5 ऐसे आम बजट जिन्होंने बदल दी देश की अर्थव्यवस्था
बजट हर साल पारित किया जाता है हर बजट में लोगों की कुछ उम्मीदें पूरी होती हैं तो कुछ नहीं। कुछ ऐसे भी बजट सत्र पेश हुए हैं जिन्होंने देश को एक नया आकार दिया है। इन बजटों से देश की तस्वीर कुछ इस तरह से बदली है कि इसका ज्यादातर असर देश की अर्थव्यवस्था पर हुआ। पर आप यह नहीं जानते होंगे कि इतने सालों से पेश हो रहे बजट में क्या कुछ अलग और नया था। साथ ही इनसे देश में क्या बदलाव आया। तो आइए जानते हैं उन खास बजट सत्र के बारे में जिन्होंने देश की तस्वीर के साथ लोगों की तकदीर भी बदल दी।
फाइनेंशियल ईयर 1957 का कलडोर बजट
1957 का यह बजट कांग्रेस की सरकार में तात्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने पेश किया था। इस बजट में कई बड़े फैसले लिए गए जिसके पॉजिटिव और निगेटिव दोनों ही असर देखने को मिले। तो वहीं 15 मई 1957 में पेश किया गया यह बजट कई माइनों में खास भी रहा क्योंकि इस बजट के जरिए आयात के लिए लाइसेंस जरुरी कर दिया गया।
नॉन-कोर प्रोजेक्ट्स के लिए इस बजट का आवंटन वापस ले लिया गया।
निर्यातकों को सुरक्षा देने के नजरिए से एक्सपोर्ट रिस्क इंश्योरेंस कॉरपोरेशन का गठन किया गया। साथ ही इस बजट के जरिए वेल्थ टैक्स भी लगाया गया और तो और इस बजट में एक्साइज ड्यूटी को 400 प्रतिशत तक बढ़ाया गया। एक्टिव इनकम और पैसिव इनकम में फर्क करने की कोशिश की गई साथ ही आयकर को भी बढ़ाया गया।
फाइनेंशियल ईयर 1973 का द ब्लैक बजट
28 फरवरी 1973 को यह आम बजट वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण ने पेश किया था। इस बजट की भी कई खास बात है। इस बजट के माध्यम से सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉपर कॉरपोरेशन और कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए।
वित्त वर्ष 1973-74 के लिए बजट में अनुमानित घाटा 550 करोड़ रुपए का रहा था, लेकिन माना जाता है कि कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण किए जाने से व्यापक असर पड़ा। कोयले पर पूरा अधिकार सरकार का हो गया और इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए कोई जगह नहीं बची।
फाइनेंशियल ईयर 1987 का राजीव गांधी बजट
यह बजट राजीव गांधी के नाम रहा। बजट को 28 फरवरी 1987 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के द्वारा पेश किया गया। इस बजट में न्यूनतम निगम कर के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया। साथ ही न्यूनतम निगम कर, जिसे अब एमएटी (MAT) या मिनिमम अल्टरनेट टैक्स के नाम से जाना जाता है को लाया गया। जिसका उद्देश्य उन कंपनियों को टैक्स की सीमा में लाया जाना था, जो बहुत ही ज्यादा मुनाफा कमा रही थीं, लेकिन वो सरकार को टैक्स नहीं देती थीं। अब यह सरकार की आय का एक बड़ा जरिया बन चुका है। आम बजट और उसकी शब्दावली से जुड़ी पूर्ण जानकारी
फाइनेंशियल ईयर 1997 का ड्रीम बजट
28 फरवरी 1997 में वित्त मंत्री पी चिंदबर के द्वारा पेश किए गए इस बजट को ड्रीम बजट का नाम दिया गया। इस बजट में लोगों और कंपनियों के लिए टैक्स प्रावधान में बदलाव किया गया था। कंपनियों को पहले से भुगतान किए गए एमएटी को आने वाले सालों में कर देनदारियों में समायोजित करने की छूट दी गई। इसके साथ ही इस बजट में वॉलंटियरी डिसक्लोजर ऑफ इनकम स्कीम (VDIS) लॉन्च की गई, ताकि काले धन को बाहर लाया जा सके।
इस योजना के बाद लोगों ने अपनी आय का खुलासा करना शुरु कर दिया। जिससे 1997-98 के दौरान इनकम टैक्स से सरकार को 18,700 करोड़ रुपए मिले। तो वहीं अप्रैल 2010 से जनवरी 2011 के बीच यह आय एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई। ऐसे में बाजार में मांग तेज हुई जिससे औद्योगिक विकास को काफी बल मिला। बजट पेश करने से पहले 'हलवा' क्यों खिलाते हैं वित्तमंत्री?
फाइनेंशियल ईयर 2005 का बजट
इस बजट को भी वित्त मंत्री पी चिदंबरम के द्वारा पेश किया गया। इस आम बजट को 28 फरवरी 2005 पारित किया गया। इस बजट में वित्त मंत्री द्वारा एक नई योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेगा) पेश की गई। इस योजना के कई फायदे तो कई नुकसान भी देखने को मिले। इससे एक ओर जहां ग्रीमीण क्षेत्र में रोजगार और आमदनी का जरिया खुला और देश में बड़े पैमाने पर ब्यूरोक्रैसी को प्रोत्साहन मिला तो वहीं पंचायत, गांव और जिला स्तर पर नौकरशाहों का जाल बिछने लगा। बजट 2018 को पारित करने में इन 7 लोगों की होगी अहम भूमिका