ये हैं मोदी सरकार के 5 रत्न, बदलेंगे देश की किस्मत
नयी दिल्ली। ऐसा माना जाता है कि भारत में किसी भी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के समय पर पूरा होने की उम्मीद कम ही होती है। ऐसे में समय से पहले किसी प्रोजेक्ट पूरा होने का तो सवाल ही नहीं है। बहुत सारी परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण, वित्तीय संकट और राजनीतिक मुकदमेबाजी के चलते तय समय से कई-कई साल अधिक ले लेती हैं। यही कारण है कि भारत में 'मेट्रो मैन' कहे जाने वाले ई. श्रीधरन का काम काफी सराहनीय रहा। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रमुख के रूप में, उन्हें पहली 65 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए 10 साल दिये गये थे लेकिन उन्होंने इसे सात साल और तीन महीने में मेट्रो का इतना काम पूरा कर लिया। ऐसे ही सरकारी अधिकारी किसी भी सरकार को दिशा देने का काम करते हैं। साथ ही इनकी मेहनत और आइडिया देश की तरक्की में बहुत बड़ा योगदान होता है। इस समय ऐसे ही 5 अधिकारी मोदी सरकार के पास हैं, जिन पर कई बड़ी परियोजानाओं की जिम्मेदारी है।
अनुराग सचान
अनुराग सचान ने 2018 में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर का पदभार संभाला। पेशे से सिविल इंजीनियर सचान इंडियन रेलवे सर्विसेस ऑफ इंजीनियर्स 1981 बैच के अधिकारी हैं। उन्होंने भारतीय रेलवे के साथ अपने 35 सालों के लंबे कैरियर के दौरान बड़ी चुनौतीपूर्ण और तकनीकी रूप से एडवांस्ड रेलवे इन्फ्रास्ट्रक्चर को पूरा किया। उन पर 81000 करोड़ रु की फ्रेट कोरिडोर की चुनौती है, जो पूर्व में 1504 किमी और पश्चिम में 1856 किमी लंबा है। इसके दिसंबर 2021 तक पूरा होने की उम्मीद है। सचान के सामने एक चुनौती है और ये कि कोरिडोर 9 राज्यों और 62 जिलों से गुजरता है।
एवीएस रेड्डी
एनवीएस रेड्डी हैदराबाद मेट्रो रेल लिमिटेड (एचएमआरएल) के एमडी हैं। उन्हें अप्रैल 2007 में एचएमआरएल के एमडी के रूप में नियुक्त किया गया था। रेड्डी एलऐंडटी मेट्रो रेल हैदराबाद लिमिटेड के बोर्ड में सरकार के निदेशक भी हैं। रेड्डी इंडियन रेलवे अकाउंट्स सर्विस से हैं। उन्हें 1983 में सिकंदराबाद में पहली पोस्टिंग मिली थी। उन पर 72 किमी हैदराबाद मेट्रो की जिम्मेदारी है। 69 किमी की शुरुआत हो चुकी है, मगर 3 किमी पर फैसला लिया जाना है। उनके सामने चुनौती है 270 हेक्टर जमीन अधिग्रहण करने और हैदराबाद में धार्मिक स्थलों के करीब मेट्रो का रास्ता निकालने की। एक बार उन्होंने कहा था कि मेरी 35 फीसदी चुनौतियाँ इंजीनियरिंग से जुड़ी हैं। बाकी सामाजिक-आर्थिक हैं।
आरए राजीव
1987 बैच के आईएएस राजीव मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण के महानगर कमिशनर हैं। उन पर मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक तैयार करने की जिम्मेदारी है, जिसकी लंबाई 22 किमी है। इस परियोजना पर काम चल रहा है और इसके सितंबर 2022 तक पूरा होने की संभावना है। उनके सामने मुख्य चुनौती है परियोजना के निर्माण में इंजीनियरिंग की जटिलताएँ। ये परियोजना देश के सबसे लंबे समुद्र पुल की है। वैसे राजीव कहते हैं कि वित्त, शहरी विकास और पर्यावरण मंत्रालयों में उनका अनुभव काम आ रहा है।
मंगू सिंह
मेट्रो मैन ई श्रीधरन के रिटायर पर उनकी जगह मंगू सिंह ने ली, उनकी परिचय में यही काफी है। वैसे सिंह इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इंजीनियर्स के 1980 बैच से हैं। इस समय वे दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के एमडी हैं और पहले वे कोलकाता मेट्रो के डिप्टी चीफ इंजीनियर थे। वे दिल्ली मेट्रो के विस्तार का काम संभाल रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी चुनौती है चल रहे मेट्रो के चौथे चरण में प्लान की गयी जमीन का अधिग्रहण न मिलना। साथ ही मेट्रो के रखरखाव की लागत से जुड़ी चुनौती भी है। मंगू सिंह कहते हैं कि हमारे ऊपर कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। कई बार हमारे सामने चुनौतियाँ आईं। लेकिन हमने उन्हें पीछे छोड़ दिया।
राधेश्याम मोपलवार
1995 बैच के आईएएस राधेश्याम मोपलवार इस समय महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के उपाध्यक्ष और एमडी हैं। वे 55000 करोड़ रुपये की लागत वाले 701 किमी लंबी सड़क परियोजना संभाल रहे हैं। इस परियोजना का 30 फीसदी काम पूरा चुका है। पूरी परियोजना दिसंबर 2021 तक होनी है। मुख्य चुनौती राधेश्याम मोपलवार के सामने चुनौती जमीन अधिग्रहण की ही रही है, जिसमें 85 फीसदी प्राइवेट जमीन है।
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