आरबीआई ने जीडीपी और रेपो रेट पर दिया दोहरा झटका, सस्ता नहीं होगा कर्ज
नई दिल्ली। 3 दिन से चल रही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि जानकारों को आशा थी कि इस बार भी आरबीआई 25 बेसिस प्वाइंट रेपो घटा सकता है। आरबीआई के रेपो रेट न घटाने से सस्ते कर्ज का इंतजार कर रही इंडस्ट्री को झटका लगेगा। देश के ज्यादातर बैंकों के अपने कर्ज को रेपो रेट से लिंक कर दिया है। ऐसे में रेपो रेट न घटने से कर्ज सस्ता नहीं हो पाएगा। फिलहाल रेपो रेट 5.15 फीसदी पर बना रहेगा। हालांकि इससे पहले रिजर्व बैंक इस साल अब तक रेपो रेट में 1.35 फीसदी की कटौती कर चुका है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने दी जानकारी
मौद्रिक नीति की समीक्षा के बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात की जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में सदस्यों में रेपो रेट को न घटाने पर सहमति बनी, जिसके बाद यह फैसला लिया गया। इसके बाद अभी रेपो रेट 5.15 फीसदी पर बना रहेगा। इसके अलावा आरबीआई ने रिसर्व रेपो रेट को 4.90 फीसदी और बैंक रेट को 5.40 प्रतिशत पर यथावत रखा है। आरबीआई की द्विमासिक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार से शुरू हुई थी। इस तीन दिवसीय बैठक में लिए गए फैसलों की आज यानी 5 दिसंबर को जानकारी दी गई।
जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाया
वही आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी की ग्रोथ का अनुमान 6.1 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। इससे पहले अक्टूबर में आरबीआई ने रियल जीडीपी ग्रोथ 6.1 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) ने कहा कि आर्थिक गतिविधियां कमजोर हुई हैं। हालांकि सरकार और आरबीआई ने इससे उबरने के लिए कई कदम उठाएं हैं।
आरबीआई का अनुमान
आरबीआई ने अनुमान जताया है कि अगले साल के बजट से बेहतर ढंग से पता चलेगा कि अर्थव्यवस्था के सपोर्ट में सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उसका फायदा मिला की नहीं।
मौद्रिक नीति समिति में शामिल सदस्य
1. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर - अध्यक्ष, पदेन (श्री शक्तिकांत दास)
2. भारतीय रिजर्व बैंक के उप-गवर्नर, मौद्रिक नीति के प्रभारी - सदस्य, पदेन
3. भारतीय रिजर्व बैंक के एक अधिकारी को केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है - पदेन सदस्य (डॉ. माइकल देवव्रत पात्रा)
4. डॉ. रवींद्र ढोलकिया, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद - सदस्य
5. प्रोफेसर पामी दुआ, निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स - सदस्य
6. श्री चेतन घाटे, प्रोफेसर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान - सदस्य
नोट : पदेन सदस्यों को छोड़कर शेष सभी सदस्य 4 वर्ष या अगले आदेश तक (जो भी पहले हो) कार्यभार सँभालते हैं.
मोदी सरकार में रेपो रेट की हिस्ट्री
काफी रोचक है। पूरे मोदी सरकार के कार्यकाल में यह दर कभी उतना नहीं रही जितनी दर ठीक मोदी सरकार के शपथ के ठीक पहले थी। जब मोदी सरकार ने कार्यकाल संभाला तो रेपो रेट की दर 8 फीसदी थी, जो फिर कभी उतनी नहीं हुई है।
ये है रेपो रेट का सफर
-4 अक्टूबर 2019 को 5.15 फीसदी
-7 अगस्त 2019 को 5.40 फीसदी
-6 जून 19 को 5.75 फीसदी
-04 अप्रैल 19 को 6.00 फीसदी
-07 फरवरी 19 को 6.25 फीसदी
-05 दिसंबर 18 को 6.50 फीसदी
-05 अक्टूबर 18 को 6.50 फीसदी
-01 अगस्त 18 को 6.50 फीसदी
-06 जून 18 को 6.25 फीसदी
-05 अप्रैल 18 को 6.00 फीसदी
-07 फरवरी 18 को 6.00 फीसदी
-06 दिसंबर 17 को 6.00 फीसदी
-04 अक्टूबर 17 को 6.00 फीसदी
-02 अगस्त 17 को 6.00 फीसदी
-08 जून 17 को 6.25 फीसदी
-06 अप्रैल 17 को 6.25 फीसदी
-08 फरवरी 17 को 6.25 फीसदी
-07 दिसंबर 16 को 6.25 फीसदी
-04 अक्टूबर 16 को 6.25 फीसदी
-05 अप्रैल 16 को 6.50 फीसदी
-29 सितंबर 15 को 6.75 फीसदी
-02 जनवरी 15 को 7.25 फीसदी
-04 मार्च 15 को 7.50 फीसदी
-15 जनवरी 15 को 7.75 फीसदी
-28 जनवरी 14 को 8.00 फीसदी
मॉनिटरी पॉलिसी में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का मतलब
रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन देते हैं। रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे, जैसे कि होम लोन, व्हीकल लोन वगैरह।
रिवर्स रेपो रेट
जैसा इसके नाम से ही साफ है, यह रेपो रेट से उलट होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है. बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दे।
सीआरआर
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।
एसएलआर
जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है। आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है।
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