अमेरिका के भरोसे भारत खाड़ी देशों को दिखाएगा ठेंगा, ये है मामला
नयी दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से अमेरिका-ईरान के बीच बढ़े तनाव से मध्य-पूर्व में उथल-पुथल बढ़ी है। इस उथल-पुथल का बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ा है। इसके चलते भारत, जो कि दुनिया के कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातकों में से एक है, ने कच्चे तेल के आयात को लेकर बड़े बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। भारत ने अमेरिका से अपना तेल आयात दोगुना करने का फैसला लिया है। इस फैसले के पीछे भारत का उद्देश्य मध्य-पूर्व के देशों पर तेल को लेकर अपनी निर्भरता कम करना है। दरअसल मध्य-पूर्व में किसी भी छोटी-बड़ी घटना से तेल आयात प्रभावित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। ऐसे में भारत अपना तेल आयात प्रभावित होने देना नहीं चाहेगा, जिसके चलते भारत तेल के लिए अमेरिका पर अपनी निर्भरता बढ़ाने जा रहा है। अमेरिका से भारत ने कच्चे तेल की खरीद 2017-18 में शुरू की थी, जो अब साल में लगभग 60 लाख टन का आंकड़ा पार कर चुकी है।
अमेरिका से आयेगा दोगुना तेल
एक अधिकारी के मुताबिक हम अपने कच्चे तेल आयात को अमेरिका से दोगुना कर 1.20 करोड़ टन तक आसानी से पहुँचा सकते हैं। हम अमेरिकी सरकार और निजी तेल कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं क्योंकि वहां पेट्रोलियम एक अनियमित कारोबार है। हम अमेरिकी फर्मों से अच्छी दरों और बेहतर शर्तों की उम्मीद करते हैं जो हमारी परिवहन लागतों की भरपाई करेंगे। बदले में, हम उन्हें एक सुनिश्चित बाजार की पेशकश कर सकते हैं। अमेरिका से तेल आयात दोगुना करने के अलावा भारत रूस और अफ्रीका के तेल उत्पादक देशों से भी आयात समझौते करने की योजना बना रहा है।
फिलहाल मध्य-पूर्व पर है निर्भरता
इस समय भारत कच्चे तेल के आयात के लिए पश्चिम एशिया पर काफी निर्भर करता है। 2018-19 में भारत ने जिन तीन देशों से सबसे अधिक तेल का आयात किया उनमें इराक (करीब 4.66 करोड़ टन), सऊदी अरब (4.03 करोड़ टन) और यूएई (करीब 1.75 करोड़ टन) शामिल हैं। वहीं कुवैत से 1.08 करोड़ टन तेल आया। अधिकारियों ने कहा कि भारत का क्रूड तेल आयात के लिए विविधीकरण जरूरी है क्योंकि अन्य आयातकों के उलट न तो भारत के पास अपने संसाधन हैं और न ही विदेशों में महत्वपूर्ण तेल और गैस संपत्ति खरीदी है।
यह भी पढ़ें - ट्रम्प की धमकी से उछले कच्चे तेल के दाम, छुआ 70 डॉलर का आंकड़ा