आरबीआई : रेपो रेट घटाया, लोन हो गए सस्ते
नई दिल्ली। भारतीय रिवर्ज बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कमी कर दी है। रेपो में लगातार यह पांचवीं बार कमी की गई है। इस कटौती के बाद रेपो रेट 5.15 फीसदी हो गई है। रेपो रेट में कटोती के चलते रिवर्स रेपो रेट भी घट कर 4.90 फीसदी हो गई है। इसी प्रकार बैंक रेट भी 5.40 फीसदी हो गया है। रिवर्स रेपो रेट और बैंक रेट की दरें रेपो रेट में बदलाव के चलते उसी अनुपात में अपने आप ही बदल जाती हैं।
आरबीआई गवर्नर ने दी जानकारी
मौद्रिक नीति घोषणा करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया कि सीआरआर को 4 फीसदी और एसएलआर को 19 फीसदी पर यथावत रखा गया है। वहीं दास ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.9 फीसदी से घटाकर 6.1 फीसदी कर दिया है। इसके पहले अगस्त में आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.0 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी किया था। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.6 फीसदी से लेकर 7.2 फीसदी रखा है।
बैठक में 2 सदस्य रेपो रेट में कटौती के खिलाफ
मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक के दौरान जहां 5 सदस्य नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के पक्ष में रहे, जबकि 2 सदस्य इसके खिलाफ थे। वहीं कमेटी ने पॉलिसी का रुख अकोमेडेटिव पर बरकरार रखा है। आरबीआई ने जानकारी दी है कि मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 3 से 5 दिसबंर 2019 के बीच होगी।
मौद्रिक नीति समिति में शामिल सदस्य
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर - अध्यक्ष, पदेन; (श्री शक्तिकांत दास)
भारतीय रिजर्व बैंक के उप-गवर्नर, मौद्रिक नीति के प्रभारी - सदस्य, पदेन;
भारतीय रिजर्व बैंक के एक अधिकारी को केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है - पदेन सदस्य,; (डॉ. माइकल देवव्रत पात्रा)
डॉ. रवींद्र ढोलकिया, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद - सदस्य
प्रोफेसर पामी दुआ, निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स - सदस्य
चेतन घाटे, प्रोफेसर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान - सदस्य
नोट : पदेन सदस्यों को छोड़कर शेष सभी सदस्य 4 वर्ष या अगले आदेश तक (जो भी पहले हो) कार्यभार सँभालते हैं.
मोदी सरकार में रेपो रेट की हिस्ट्री
काफी रोचक है। पूरे मोदी सरकार के कार्यकाल में यह दर कभी उतना नहीं रही जितनी दर ठीक मोदी सरकार के शपथ के ठीक पहले थी। जब मोदी सरकार ने कार्यकाल संभाला तो रेपो रेट की दर 8 फीसदी थी, जो फिर कभी उतनी नहीं हुई है।
ये है रेपो रेट का सफर
7 अगस्त 2019 को 5.40 फीसदी
6 जून 19 को 5.75 फीसदी
04 अप्रैल 19 को 6.00 फीसदी
07 फरवरी 19 को 6.25 फीसदी
05 दिसंबर 18 को 6.50 फीसदी
05 अक्टूबर 18 को 6.50 फीसदी
01 अगस्त 18 को 6.50 फीसदी
06 जून 18 को 6.25 फीसदी
05 अप्रैल 18 को 6.00 फीसदी
07 फरवरी 18 को 6.00 फीसदी
06 दिसंबर 17 को 6.00 फीसदी
04 अक्टूबर 17 को 6.00 फीसदी
02 अगस्त 17 को 6.00 फीसदी
08 जून 17 को 6.25 फीसदी
06 अप्रैल 17 को 6.25 फीसदी
08 फरवरी 17 को 6.25 फीसदी
07 दिसंबर 16 को 6.25 फीसदी
04 अक्टूबर 16 को 6.25 फीसदी
05 अप्रैल 16 को 6.50 फीसदी
29 सितंबर 15 को 6.75 फीसदी
02 जनवरी 15 को 7.25 फीसदी
04 मार्च 15 को 7.50 फीसदी
15 जनवरी 15 को 7.75 फीसदी
28 जनवरी 14 को 8.00 फीसदी
मॉनिटरी पॉलिसी में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का मतलब
रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन देते हैं। रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे, जैसे कि होम लोन, व्हीकल लोन वगैरह।
रिवर्स रेपो रेट
जैसा इसके नाम से ही साफ है, यह रेपो रेट से उलट होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है. बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दे।
सीआरआर
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।
एसएलआर
जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है। आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है।
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