जिस RCom से टूटा था Reliance Group, उसी ने फिर सबको मिलाया
नई दिल्ली। ज्यादातर लोगों को यह याद ही नहीं होगा कि रिलायंस कम्युनिकेशन (RCom) ही वह कंपनी है, जिसके चलते अनिल अंबानी (Anil Ambani) और मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के बीच झगड़ा हुआ था। यह बात अलग है कि उस वक्त इस कंपनी का नाम रिलायंस इन्फोकॉम लिमिटेड (Reliance Infocom Limited) था। लेकिन जिस कंपनी ने चलते दोनों भाइयों के बीच झगड़ा शुरू हुआ था, अंत में वहीं कंपनी दोनों भाइयों को पास लाने में मददगार भी बनी। कार्पोरेट जगत में यह किस्सा काफी लम्बे समय तक याद रखा जाएगा, क्योंकि मुकेश अंबपनी के बारे में फेमस है कि वह बिना फायदे कुछ भी खर्च नहीं करते हैं और इस वक्त उन्होंने करीब 500 करोड़ रुपये सिर्फ इस बात पर खर्च कर दिए कि अपने भाई अनिल अंबानी (Anil Ambani) को बचाना है। अगर अनिल अंबानी (Anil Ambani) को बड़े भाई से इस समय यह मदद न मिलती तो उन्हें जेल तक जाना पड़ सकता था।
पहले जानतें है कि क्या है किस्सा
अनिल अंबानी (Anil Ambani) को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वह एरिक्सन (Ericsson) को बकाए का 458.77 करोड़ रुपये दे। इसके लिए 19 मार्च की डेड लाइन थी। लेकिन यह पैसा अनिल अंबानी (Anil Ambani) ने एक दिन पहले ही चुका दिया। जैसे ही अनिल अंबानी (Anil Ambani) ने यह पैसा चुकाया उसी वक्त के यह सवाल उठ रहा था कि इतना पैसा अनिल अंबानी (Anil Ambani) के पास आया कहां से। क्यों कि अनिल अंबानी (Anil Ambani) और उनकी कंपनी दोनों की वित्तीय स्थिति काफी खराब थी, और यह अपने संसाधनों से यह पैसा चुकाने की स्थिति में नहीं थे। बाद में इस बात का खुलाया खुद अनिल अंबानी (Anil Ambani) ने किया और साफ किया कि एरिक्शन को बकाया चुकाने में बड़े भाई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और उनकी पत्नी नीता अंबानी (nita ambani) ने मदद की है।
मदद मिलने के बाद क्या कहा अनिल अंबानी (Anil Ambani) ने
अनिल अंबानी (Anil Ambani) ने सही समय पर मदद करने के लिए बड़े भाई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और भाभी नीता अंबानी (nita ambani) का धन्यवाद दिया और आभार जताया। इसके लिए उनकी कंपनी की तरफ से बकायदा लिखित में बयान जारी किया गया है। इस बयान में लिखा है कि, 'मैं अपने आदरणीय बड़े भाई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और भाभी नीता अंबानी (nita ambani) के इस मुश्किल वक्त में मेरे साथ खड़े रहने और मदद करने का तहेदिल से शुक्रिया करता हूं। समय पर यह मदद करके उन्होंने परिवार के मजबूत मूल्यों और परिवार के महत्व को रेखांकित किया है। मैं और मेरा परिवार बहुत आभारी है कि हम पुरानी बातों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ चुके हैं और उनके इस व्यवहार ने मुझे अंदर तक प्रभावित किया है।'
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ये है 2005 में अलग होने की कहानी
मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और उनके छोटे भाई अनिल अंबानी (Anil Ambani) 2005 में अलग अलग हुए थे। उस समय रिलायंस ग्रुप का बंटवारा (Reliance Group's demerger) देश और दुनिया के लिए बड़ी खबर था। उस समय रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) 1 लाख करोड़ रुपये की वैल्यू कंपनी थी। बंटवारे के बाद दोनों भाइयों को 50-50 हजार करोड़ रुपये की वैल्यू मिली। इस बंटवारे के दूसरे साल यानी 2006 में अनिल अंबानी (Anil Ambani), लक्ष्मी मित्तल और अजीम प्रेमजी के बाद देश के तीसरे अमीर आदमी बन गए थे। उस वक्त अनिल अंबानी (Anil Ambani) की वैल्यू अपने बड़े भाई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) से करीब 550 करोड़ रुपये ज्यादा थी।
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दोनों भाई 24 की उम्र में जुड़े थे रिलायंस से
धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने 15 हजार रुपये की पूंजी से टेक्सटाइल कंपनी की स्थापना की थी। यही कंपनी रिलायंस (Reliance) थी, जिसकी स्थापना से एक साल पहले 1957 में मुकेश का जन्म हुआ था। कंपनी स्थापित करने के दूसरे साल अनिल का जन्म हुआ। पातालगंगा पेट्रोकेमिकल प्लांट लगाने के लिए मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) स्टेनफर्ड यूनिवर्सिटी में एमबीए की पढ़ाई छोड़कर 1981 में पिता के साथ जुड़ गए थे। उस समय उनकी उम्र 24 साल थी। जबकि अमेरिका से एमबीए की पढ़ाई करने वाले अनिल अंबानी (Anil Ambani) 1983 में को-चीफ ऑफिसर के रूप में रिलायंस से जुड़े। उस समय अनिल की उम्र भी 24 साल थी।
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रिलायंस में मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) का सफर
रिलायंस (Reliance) में जुड़ने के बाद मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) ने रसिकभाई मेस्वामी के साथ काम शुरू किया था। रसिकभाई रिलायंस समूह के सह-संस्थापक और उस समय एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (Reliance Group co-founder Rasikbhai) थे। मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) रोजाना रसिकभाई को रिपोर्ट देते थे और उनके आदेशानुसार ही काम करते थे। 1985 में रसिकभाई के निधन के एक साल बाद सन् 1986 में धीरूभाई को पहला आर्ट अटैक आया था। इसके बाद रिलायंस की पूरी जिम्मेदारी मुकेश और अनिल अंबानी (Anil Ambani) पर आ गई। इसके बाद मुकेश ने रिलायंस इन्फोकॉम लिमिटेड (बाद में रिलायंस कम्युनिकेशन) की स्थापना की थी।
धीरूभाई का निधन और विवाद
6 जुलाई 2002 को हार्ट अटैक से धीरूभाई अंबानी का निधन हो गया। यह घटना केवल अंबानी परिवार ही नहीं बल्कि रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) के लिए भी बड़ा झटका था। क्योंकि धीरूभाई ने बिजनेस के बंटवारे के लिए कोई वसीयत नहीं लिखी थी। यहीं से रिलायंस ग्रुप में दिक्कतें बढ़ने लगीं। धीरूभाई के निधन के बाद कामकाज को लेकर मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) के बीच विवाद बढ़ने लगा। एक समय ऐसा भी आया जब दोनों भाई रिलायंस में कंट्रोल को लेकर आमने-सामने आ गए।
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दोनों भाइयों के व्यक्तित्व और स्वभाव में विरोधाभास
मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) गंभीर और योजना-आधारित तरीके से काम करने में विश्वास करते हैं। वे बड़ी परियोजनाओं में पूरी डिटेल के साथ काम करते हैं। जामनगर में 15 हजार करोड़ के रिलायंस पेट्रोलियम प्लांट की स्थापना में मुकेश का सबसे बड़ा योगदान रहा है। दूसरी ओर अनिल अंबानी (Anil Ambani) हाईप्रोफाइल लाइफ स्टाइल और आधुनिक तौर-तरीकों में विश्वास करते हैं।
एक समय सड़क पर आ गई थी लड़ाई
मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल की तुलना राम-लक्ष्मण के रूप में होती थी। धीरूभाई के निधन के बाद बढ़ते विवाद के कारण दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई। धीरे-धीरे अनिल अंबानी (Anil Ambani) रिलायंस एनर्जी और रिलायंस कैपिटल रिलायंस कैपिटल (Reliance capital) तक सीमित हो गए। 27 जुलाई 2004 को आरआईएल (RIL) की बोर्ड मीटिंग में रिलायंस ग्रुप से जुड़े सभी आर्थिक निर्णय लेने के अधिकार मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) को सौंपे गए। अनिल अंबानी (Anil Ambani) ने चार पेज का पत्र लिखकर इसका कड़ा विरोध भी किया और बोर्ड की मीटिंग बीच में छोड़कर बाहर आ गए। उस वक्त यह देश में बहुत बड़ी बिजनेस न्यूज (business news) बनी थी। आखिरकार 2005 में रिलायंस के बंटवारे की योजना बनाई गई। फ्लैगशिप रिलायंस इंडस्ट्रीज की सत्ता मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) को सौंपी गई। पेट्रोकेमिकल, ऑयल और गैस रिफाइनरी तथा टैक्सटाइल मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के हिस्से में आया। जबकि अनिल अंबानी (Anil Ambani) की कंपनी अनिल धीरूभाई अंबानी (एडीएजी) के हिस्से में टेलिकॉम, पावर, एन्टरटेनमेंट और फायनांसियल आए।
दोनों भाइयों के बीच हुआ था नॉन-कंपीट एग्रीमेंट
जब रिलायंस ग्रुप रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) का बंटवारा हुआ तो दोनों भाइयों के बीच एक नॉन कंपीट एग्रीमेंट भी हुआ था। इस करार के अनुसार मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) ऐसा कोई बिजनेस नहीं शुरू कर सकते थे जिससे अनिल को नुकसान हो। लेकिन जैसे ही इस करार की मियाद पूरी हुई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) ने मोबाइल फोन मार्केट में कदम रख दिया और बाद में क्या हुआ यह अब इतिहास है।