Banking System में कैश की किल्लत, चुनाव बाद ही मिलेगी राहत
नई दिल्ली। देश के बैंकिंग सिस्टम में कैश की कमी (Cash problem in banking system) बढ़ गई है। हालात यह हो गई है कि जो कैश की किल्लत अप्रैल के अंत में करीब 90 से 95 हजार करोड़ रुपये की आसपास थी, वह अब बढ़कर करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये हो गई है। आरबीआई (RBI) लगातार इस समस्या को दुर करने के लिए कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। इसके चलते जहां लोगों को सस्ता कर्ज (loan) नहीं मिल पा रहा है, वहीं डिमांड प्रभावित होने से निजी निवेश भी प्रभावित हो रहा है।
चुनाव खत्म होने तक बी रहेगी कैश की किल्लत
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने अपनी एक रिपोर्ट में अनुमान जताया है कि सिस्टम में कैश की यह कमी (Cash problem in banking system) लोकसभा चुनाव खत्म होने तक बनी रहेगी। हालांकि चुनाव खत्म होने पर भी यह कमी पूरी तरह से दूर नहीं होगी बल्कि 75 हजार करोड़ रुपये से लेकर 1 लाख करोड़ रुपये तक की कमी सिस्टम में फिर भी बनी रहेगी। बैंकिंग सिस्टम में कैश की किल्लत (Cash problem in banking system) का मुख्य कारण इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रुप IL&FS का कर्ज न चुका पाना और जीएसटी का रिफंड बड़ी वजह है। सरकार का जीएसटी कलेक्शन (GST Collection) का अनुमान काफी ज्यादा है और जीएसटी कलेक्शन (GST Collection) अभी उस स्तर तक नहीं पहुंचा है।
सिस्टम में कैश की किल्लत का असर
अगर देश के बैंकिंग सिस्टम में कैश की किल्लत (Cash problem in banking system) होती है तो इसका सीधा सा मतलब है कि बैंक मांग के अनुरूप कर्ज नहीं दे पा रहे हैं। जब लोगों को कर्ज नहीं मिलता है तो सामानों की मांग नहीं बढ़ती है। सामान की मांग न बढ़ने पर कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में निवेश नहीं करती हैं। इस प्रकार पूरी अर्थव्यवस्था भंवर में फंस जाती है और जीडीपी ग्रोथ पर इसका असर पड़ता है। वहीं अगर बैंकों के पास कैश ज्यादा होता है तो वह आसानी से कर्ज देते हैं, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है। बाद में इस बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए कंपनियां अपना निवेश बढ़ाती हैं और इससे अर्थव्यवस्था का पहिया घूमने लगता है। जब ऐसा होता है तो रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।
आरबीआई (RBI) ने उठाया है कदम
आरबीआई (RBI) पिछले कई महीनों से बैंकिंग सिस्टम में कैश बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसके तहत पिछले वित्त वर्ष में अगस्त तक ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) के जरिए बैंकिंग सिस्टम में 40 हजार करोड़ रुपये डालने की योजना बनाई है। इसके तहत मई में ही आरबीआई (RBI) 25 हजार करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में डालने जा रहा है। ओएमओ (OMO) के तहत आरबीआई सरकारी बॉन्ड की खरीद कर सिस्टम में कैश बढ़ाता है। यह बांड बैंकों से खरीदे जाते हैं, जिससे बैंकों के पास कैश बढ़ जाता है।
इससे पहले आरबीआई (RBI) घटा चुका है रेपो रेट
बैंकिंग सिस्टम में कैश की किल्लत (Cash problem in banking system) की दूर करने के लिए आरबीआई (RBI) दो बार अपनी रेपो रेट को घटा चुका है। इन दो बार में कुल मिला कर आधा फीसदी रेपो घट चुका है, लेकिन इससे भी बैंकिंग सिस्टम में कैश की समस्या दूर नहीं हो पाई है। इसलिए जानकारों का अनुमान है कि आरबीआई (RBI) जून की मौद्रिक समीक्षा में भी रेपो रेट में और कटौती कर सकता है। रेपो रेट वह दर है, जिस पर बैंक आरबीआई से कम समय के लिए उधार लेते हैं।
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