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इनफोसिस : हर 10,000 रु के निवेश को बना दिया 2.5 करोड़ रुपये

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नई दिल्ली। अपने देश में भी लोगों ने बड़ी-बड़ी सफलताएं पाई हैं। इनमें एक सफलता 7 दोस्तों ने एक कंपनी शुरू करने के बाद पाई। इस कंपनी को स्थापित करने का यह सपना आज से 26 साल पहले देखा गया था। उस समय इन दोस्तों के मन में खयाल आया कि अपनी कंपनी शुरू की जाए, लेकिन दिक्कत थी पैसाें की। यह दोस्त जब भी एक साथ बैठते तो सपने तो बड़े-बड़े बुनते, लेकिन अंत में दिक्कत पैसों की आ जाती। लेकिन एक दिन इन्हीं दोस्तों में से एक की पत्नी अचानक सामने आती हैं और अपनी पूरी जमा पूंजी पति के हाथ में रख देती हैं। पति थोड़ा उलझन में पड़ते हैं, लेकिन अंत में पैसे लेते हैं। यहीं से पड़ती है देश एक नामी कंपनी की नीव, जिसने देश के हजारों लोगों को करोड़पति बना दिया। आइये जानते हैं कंपनी का इतिहास और लोगों को करोड़पति बनाने की कहानी।

इनफोसिस : हर 10,000 रु के निवेश को बना दिया 2.5 करोड़ रुपये

कौन थे दोस्त और कौन सी है कंपनी
इस कंपनी का नाम है इनफोसिस। इसकी शुरुआत 7 दोस्तों ने की थी। आज यह कंपनी देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है, लेकिन इसके बैंचमार्क नंबर एक कंपनी टीसीएस पर भी भारी पड़ते हैं। आज भी इनफोसिस की गाइड लाइन से देश का आईटी बाजार चलता है। एक समय ऐसा था कि इनफोसिस अपनी तिमाही गाइड लाइन जारी करती थी, और बाजार अंदाजा लगा लेता था कि आने वालाा समय आईटी मार्केट के लिए कैसा रहेगा। इस कंपनी के फाउंडर लोगों में थे 1981 में नारायण मूर्ति, नंदन निलेकणी, एस गोपालकृष्णन, एस डी शिबुलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा। इन सभी ने अपनी नौकरी छोड़ी और महाराष्ट्र के शहर पुणे में इनफोसिस का पत्थर रखा।

किसने दिए थे 10000 रुपये कंपनी शुरू करने के लिए

किसने दिए थे 10000 रुपये कंपनी शुरू करने के लिए

जब यह दोस्त पैसों की दिक्कतों का सामना कर रहे थे उस वक्त नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति ने अपनी पूरी जमापूंजी 10000 रुपये इन लोगों को दिया था। सुधा खुद इंजीनियर थी, और इनके कॅरियर की शुरुआत टाटा ग्रुप से हुई थी। टाटा ग्रुप से जुड़ा किस्सा भी बड़ा ही रोचक है। रोज नारायण मूर्ति अपनी पत्नी सुधा को लेने के लिए ऑफिस जाते थे। एक दिन इनको लेने आने में देर हो गई। उसी वक्त जेआरडी टाटा ऑफिस से निकल कर घर जा रहे थे। उन्होंने सुधा को अकेले खड़े देखा तो उनके साथ खड़े हो गए और जब तक साथ रहे जब तक नारायण मूर्ति उनको लेने नहीं आ गए। जब नारायण मूर्ति को लेने आए तो जेआरडी ने उनको समय से आने की नसीहत दी। जेआरडी के निधन के बाद इनफोसिस में उनकी मूर्ति की स्थापना की गई थी, जो आज भी शान से खड़ी है।

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जानिए आईपीओ की कहानी

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इनफोसिस की स्थापना 1981 में नारायण मूर्ति, नंदन निलेकणी, एस गोपालकृष्णन, एसडी शिबुलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा ने नौकरी छोड़कर पुणे से की थी। इनफोसिस देश की वह कंपनी जिसने सेबी से भी आगे जाकर कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानक अपनाए। इनफोसिस 1993 में पहली बार इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) लेकर आई थी। 14 जून 1993 को इनफोसिस मुम्बई शेयर बाजार पर लिस्ट होने वाली देश की पहली आईटी कंपनी थी। इस आईपीओ के मर्चेंट बैंकर वल्लभ भंशाली की कंपनी थी। हालांकि इस कंपनी का आईपीओ बिकने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन अंत में यह आईपीओ सफल साबित हुआ। कंपनी ने अपना शेयर जनता को इश्यू प्राइस 95 रुपये में दिया था, लेकिन इसकी लिस्टिंग 52 फीसदी प्रीमियम के साथ 145 रुपये पर हुई थी। इस प्रकार कंपनी ने अपने निवेशकों को पहले ही दिन से फायदा देना शुरू कर दिया था, जो आज तक जारी है। बाद में इनफोसिस 1999 में नैस्डैक पर लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी भी बनी थी।

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जानिए निवेशकों के करोड़पति बनने की कहानी

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इंफोसिस ने अपनी लिस्टिंग से अभी तक हर साल औसतन 36 फीसदी का हर साल रिटर्न दिया है। इस वक्त भी कंपनी की मार्केट कैप सवा तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। जिन लोगों ने कंपनी के 100 शेयर इश्यू प्राइस यानी 95 रुपये में लिए उनकी वैल्यू आज बढ़कर 2.5 करोड़ रुपये हो चुकी है। यानी कंपनी में लगने वाला हर 95000 रुपये आज ढाई करोड़ रुपये हो गया है। कंपनी के पहले दिन जिनके पास केवल 100 शेयर थे, बोनस मिलने के चलते उनकी गिनती अब बढ़कर 34000 हजार हो चुकी है। कंपनी इन 26 सालों में 11 बार बोनस शेयर अपने निवेशों को जारी कर चुकी है।

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English summary

If i Buying 100 shares of Infosys in the first day of listing how much is it worth today

What is the value of 100 shares of infosys now? How many shares have today for those who take 100 shares of Infosys on the day of listing.
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