हाईकोर्ट ने आईआरडीएआई से पूछा, पैदायशी दिव्यांगों के लिए बीमा पॉलिसी क्यों नहीं
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण आरडीएआई से पूछा है कि जन्म के समय से विसंगतियों या विकारों से पीड़ित लोगों पैदायशी दिव्यांगों को बीमा कवर नहीं देना किस तरह
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण आरडीएआई से पूछा है कि जन्म के समय से विसंगतियों या विकारों से पीड़ित लोगों पैदायशी दिव्यांगों को बीमा कवर नहीं देना किस तरह तर्क संगत है। चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की पीठ ने इरडा से पूछा कि जन्मजात विसंगति से पीड़ित लोगों को बीमा कवर देने में क्या दिक्कत है। पीठ ने इरडा से 17 दिसंबर की अगली तारीख से पहले अपना जवाब देने को कहा है।
जनरल इंश्योरेंस काउंसिल और जीवन बीमा परिषद
पीठ ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल और जीवन बीमा परिषद को भी नोटिस जारी किया और अगली तारीख से पहले इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिये कहा है। अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें केंद्र, इरडा और बीमा कंपनियों से जन्मजात विसंगतियों को स्वास्थ्य और जीवन बीमा पॉलसी सुरक्षा से बाहर रखने की व्यवस्था को खत्म करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता निपुण मल्होत्रा ने याचिका में दिव्यांग विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को अस्वीकार करने की इरडा द्वारा अपनाई इस व्यवस्था को मनमाना और अवैध बताते हुए इसे चुनौती दी है। याचिका में उन लोगों को बीमा कवर देने की मांग की गई है, जिन्हें बीमा नियामक के 2016 के परिपत्र के तहत पैदायशी विसंगति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
क्या है कॉन्गेनिटल एनोमलिज?
कॉन्गेनिटल एनोमलिज को जन्म दोष भी कहा जाता है। इस बीमारी में जन्म से ही विकलांगता, हृदय रोग, डाउन सिंड्रोम समेत कई तरह की बीमारियों हो जाती हैं। आईआरडीएआई ने इस बीमारी को उस श्रेणी में रखा है, जिस पर इंश्योरेंस पॉलिसी नहीं दी जाती है। अब देखना होगा कि दिसंबर में होने वाली सुनवाई से पहले इंश्योरेंस रेग्युलेटर आईआरडीएआई और बीमा कंपनियां क्या जवाब देती हैं।