फूटी कौड़ी भी नहीं बची : दमड़ी, आना, धेला और पाई की वैल्यू कितनी होती है, जानिए
Phootie Cowrie धेला, पाई आदि क्या होता हैं। आपने कई बार लोगों के मुख से ये मुहावरा सुना ही होगा। मैनें उसकी पाई-पाई चुका दी, मैं उसको फूटी कौड़ी तक नहीं देने वाला। मगर क्या आपको पता हैं ये क्या होता हैं। लेकिन यदि आप पुराने लोगों से पूछोगे तो आपको इससे जुड़े बहुत सारे किस्से और कहानियां सुनने को मिल जायेगी। बड़े लोगों के मुख से ये सुना ही होगा कि हमारे जमाने में 4 आने का बहुत कुछ आ जाया करता था। दरअसल ये जो फूटी कौड़ी, दमड़ी, धेला, पाई और आना ये हमारी करेंसी का ही हिस्सा थे। जो पहले चलते थे चलिए जानते हैं ये क्या होते हैं।
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एक कौड़ी तीन फूटी कौड़ी से मिलकर बनती थी
एक कौड़ी जब बनती थी। जब 3 फूटी कौड़ी को मिलाया जाता था। उसके बाद 1 दमड़ी बनाने के लिए 10 फूटी कौड़ी को मिलाना पड़ता था। वही हम पाई की बार करते हैं तो 1.5 पाई का धेला और 3 पाई का एक पैसा बनता था। वही 1 आना बनाने के लिए 4 पैसे को मिलाना पड़ता था। इसी प्रकार एक लय से बात करें तो फूटी कौड़ी से कौड़ी, कौड़ी से दमड़ी, दमड़ी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना, आना से रुपया बनता था।
बंद हुए 50 पैसे और उससे कम के सिक्के
50 पैसे और उससे कम के पैसे को आरबीआई ने बंद कर दिया हैं। पहले 1, 2, 3, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे के सिक्के चलते थे। हम आपको बता से 1 रुपया में 16 आने होते थे। जो अब नहीं चलते हैं।
सोने–चांदी के सिक्के होते थे पहले के जमाने में
शेरशाह सूरी के शासन में वर्ष 1540 से 1545 के बीच पहली बार रूपये शब्द का इस्तेमाल हुआ। उन्होंने चांदी का सिक्का चलाया था। जिसका वजन लगभग 11 ग्राम हुआ करता था। इसके साथ ही सूरी ने तांबे और सोने के सिक्के भी चलाए। उस समय दाम तांबे के सिक्के को कहा जाता था और सोने के सिक्के को मोहर कहा जाता था। आपको बता दे रूपये का जब दशमलवीकरण नही हुआ था। उस समय 1 रूपये में 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई होती थी। रूपये का दशमलवीकरण वर्ष 1957 में हुआ। उसके बाद 1 रूपये में 100 पैसे हो गए।