Rupee-Dollar Exchanges Rate : डॉलर के मुकाबले रुपया धड़ाम, 28 पैसे कमजोर खुला
Rupee-Dollar Exchanges Rate : डॉलर के मुकाबले रुपया आज कमजोरी के साथ खुला। आज डॉलर के मुकाबले रुपया 28 पैसे की कमजोरी के साथ 81.66 रुपये के स्तर पर खुला। वहीं, सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 27 पैसे की कमजोरी के साथ 81.39 रुपये के स्तर पर बंद हुआ। डॉलर में कारोबार काफी समझदारी से करने की जरूरत होती है, नहीं तो निवेश पर असर पड़ सकता है।
जानिए पिछले 5 दिनों के रुपये का क्लोजिंग स्तर
-सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 27 पैसे की कमजोरी के साथ 81.39 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
-शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 23 पैसे की मजबूती के साथ 81.13 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
-बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 12 पैसे की कमजोरी के साथ 81.36 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
-मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 15 पैसे की कमजोरी के साथ 81.76 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
-सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 29 पैसे की कमजोरी के साथ 81.61 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
जानिए रुपये के कमजोर या मजबूत होने का कारण
रुपये की कीमत इसकी डॉलर के तुलना में मांग एवं आपूर्ति से तय होती है। वहीं देश के आयात एवं निर्यात का भी इस पर असर पड़ता है। हर देश अपने विदेशी मुद्रा का भंडार रखता है। इससे वह देश के आयात होने वाले सामानों का भुगतान करता है। हर हफ्ते रिजर्व बैंक इससे जुड़े आंकड़े जारी करता है। विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति क्या है, और उस दौरान देश में डॉलर की मांग क्या है, इससे भी रुपये की मजबूती या कमजोरी तय होती है।
महंगे डॉलर का जानिए आप पर असर
देश में अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी क्रूड ऑयल का आयात करना पड़ता है। इसमें भारत को काफी ज्यादा डालर खर्च करना पड़ता है। यह देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बनाता है, जिसका असर रुपये की कीमत पर पड़ता है। अगर डॉलर महंगा होगा, तो हमें ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, और अगर डॉलर सस्ता हो तो थोड़ी राहत मिल जाती है। रोज यह उठा पटक डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति को बदलती रहती है।
आजादी के समय रुपये का स्तर
एक जमाना था जब अपना रुपया डॉलर को जबरदस्त टक्कर दिया करता था। जब भारत 1947 में आजाद हुआ तो डॉलर और रुपये का दाम बराबर का था। मतलब एक डॉलर बराबर एक रुपया था। तब देश पर कोई कर्ज भी नहीं था। फिर जब 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई तो सरकार ने विदेशों से कर्ज लेना शुरू किया और फिर रुपये की साख भी लगातार कम होने लगी। 1975 तक आते-आते तो एक डॉलर की कीमत 8 रुपये हो गई और 1985 में डॉलर का भाव हो गया 12 रुपये। 1991 में नरसिम्हा राव के शासनकाल में भारत ने उदारीकरण की राह पकड़ी और रुपया भी धड़ाम गिरने लगा।
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