RBI की बैठक आज से शुरू, जानिए रेपो रेट पर क्या हो सकता है फैसला
RBI : 5 नवंबर यानी आज से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठक शुरु हो रही हैं। आरबीआई की यह मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठक 7 दिसंबर तक चलेगी। यह बैठक जब पूरी हो जाएगी। उसके बाद यानी आरबीआई 7 दिसंबर को क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान करेगी। मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, जो मौद्रिक समीक्षा नीति की जो बैठक हैं। उसमें रेपो रेट में बढ़ोतरी का ऐलान कर सकती है। उम्मीद है कि आरबीआई रेपो रेट में 0.35 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर सकता हैं। फिलहाल अभी जो रेपो रेट हैं। वो 5.90 प्रतिशत है।
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अब तक इस वर्ष 4 बार रेपो रेट में बढ़ोतरी
जो मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हैं। वो मीटिंग हर दो महीने में होती है। इस वित्त वर्ष की जो पहली मीटिंग थी। वो मीटिंग अप्रैल के महीने में हुई थी। तब जो आरबीआई हैं उन्होंने रेपो रेट को 4 प्रतिशत पर स्थिर रखा था। लेकिन आरबीआई की तरफ से 2 मई और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाया गया था। उस मीटिंग में आरबीआई ने रेपो रेट में बढ़ोतरी की। आरबीआई ने रेपो रेट को 0.40 प्रतिशत बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद जो रेपो रेट हैं उसमें ये बदलाव हुआ था। इसके बाद आरबीआई की मीटिंग हुई। जो 6 जून से 8 जून को हुई। इस मीटिंग में रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत की इजाफा किया। इसके बाद जो रेपो रेट हैं। वो 4.40 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.90 प्रतिशत कर दिया। उसके बाद अगस्त में रेपो रेट 0.50 प्रतिशत बढ़ाया गया। जिससे रेपो रेट 4.90 से बढ़कर 5.40 पर पहुंच गया। इसके बाद सितंबर में रेपो रेट में बढ़ोतरी की गई जिसके बाद बढ़ाकर 5.90 प्रतिशत की गई।
रेपो और रिवर्स रेपो रेट क्या है
अगर हम रेपो रेट की बात करते हैं, तो रेपो रेट वह दर हैं। जिस दर पर आरबीआई की तरफ से बैंको को कर्ज दिया जाता है। बैंक आरबीआई से जो कर्ज लेता हैं बैंक इसी कर्ज से अपने ग्राहकों को लोन देते हैं। रेपो रेट कम होने का मतलब यह है कि बैंक की तरफ से मिलने वाले बहुत से तरह के जो लोन होते हैं। वो सस्ते हो जाएंगे, जबकि जो रिवर्स रेपो रेट होता हैं। वो रेपो रेट से ठीक विपरीत होता है। जो रिवर्स रेट होता हैं। वो वह दर हैं जिस पर बैंकों की ओर से जमा राशि पर आरबीआई की तरफ से ब्याज मिलता है। जो रिवर्स रेपो रेट हैं उसके माध्यम से मार्केट में लिक्विडिटी को नियंत्रित किया जाता है। रेपो रेट स्थिर हैं इसका मतलब हैं कि बैंकों से मिलने वाले जो लोन की दरें हैं। वो भी स्थिर रहेंगी।
लोन महंगा हो जाता है रेपो रेट बढ़ने से
जब आरबीआई की तरफ से रेपो रेट घटाई जाती है, तो बैंक भी कई बार जो ब्याज दरें हैं उसको कम करते हैं। साथ ही जो ईएमआई हैं वो भी घटती हैं। इसी प्रकार जब रेपो बढ़ता हैं, तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती हैं। इसी वजह से ग्राहक के लिए कर्ज महंगा हो जाता है। ऐसा इसी वजह से हैं क्योंकि जो कॉमर्शियल बैंक हैं। उसको आरबीआई की तरफ से अधिक कीमतों पर पैसा मिलता है, जो उन्हें जो दरें हैं उसको बढ़ाने के लिए मजबूर करता है।