जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों से बैंक परेशान, जानिए आंकड़े
देश के कोरोवायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगभग दो महीने का लॉकडाउन लगाया गया था। जो कि 25 मार्च से शुरू हुआ था।
नई दिल्ली: देश के कोरोवायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगभग दो महीने का लॉकडाउन लगाया गया था। जो कि 25 मार्च से शुरू हुआ था। इस दौरान देखा गया कि लॉकडाउन के पहले ही भारत के विलफुल डिफॉल्टरों की संख्या में इजाफा हुआ। विलफुल डिफॉल्टरों को आसान भाषा में समझाए तो ऐसे एक संस्था या एक व्यक्ति जिसने जानबूझकर कर कर्ज चुकाने की क्षमता के बावजूद कर्ज वापस नहीं किया है।
मार्च तिमाही के बिजनेस स्टैंडड एनालिसिस ट्रांसयूनियन सिबियन डेटा के अनुसार 24,765.5 करोड़ रुपये की वसूली के लिए ऋणदाताओं ने 1,251 मामले दायर किए। इस विश्लेषण में 15 ऋणदाताओं पर विचार किया गया, जिसमें बकाया विलफुल लोनर की संख्या और मूल्य में वृद्धि देखी गई। इसके साथ ही इस विश्लेषण के लिए एक करोड़ रुपये से अधिक के डिफॉल्टरों पर विचार किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार इस कोरोना महामारी गहरी होने के कारण आर्थिक तनाव और बढ़ सकता है। लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं, जिससे व्यवसायों और बैंकों को वापस लोन देने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास विलफुल डिफॉल्टर राशियों की कुल वृद्धि का लगभग 82 प्रतिशत है। जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों में 17.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। वहीं शेष विदेशी बैंक से है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ऋण अदायगी पर रोक के बाद बैंकिंग क्षेत्र के लिए दृष्टिकोण धुंधला बना हुआ है। आर्थिक मंदी के कारण बिजनेस ग्रोथ सिगंल डिजिट में थी, जो कोविद के कारण लगे लॉकडाउन में और कम हो गया।
बैंकर कमेंट्री से पता चलता है कि अनलॉकिंग चरण में 5-10% की सीमा तक लोन स्थगन में गिरावट आई है। हालांकि, लॉकडाउन के दौरान ठहराव वाली आर्थिक गतिविधि और जोखिम में वृद्धि को देखते हुए, परिसंपत्ति की गुणवत्ता के नुकसान से इनकार नहीं किया जा सकता है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज द्वारा बैंकों पर 25 जून की रिपोर्ट के अनुसार, छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) सहित सेगमेंट में स्ट्रेस बैड लोन या नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) में बढ़ोतरी हो सकती है।
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