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बढ़ रहा NPA का बोझ, बैंकों को टेलिकॉम और रिनुअल एनर्जी सेक्‍टर में फंसे पैसे के डूबने का डर

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टेलिकॉम सेक्‍टर और रिनुअल पावर से जुड़ी कंपनियों को कर्ज देने वाले बैंकों को यह डर सता रहा है कि आखिरी पांच साल में उनका दिया गया लोन कहीं डूब न जाए। बता दें कि रिनुअल एनर्जी उत्‍पादकों पर एनपीए (NPA) बढ़ता जा रहा है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू और तेलंगाना जैसे राज्‍यों की वितरक कंपनियां खरीदी गई बिजली का पेमेंट वक्‍त पर करने में नाकाम हो रही हैं। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की ओर से तैयार किए गए डाटा के अनुसार 31 जुलाई 2019 तक यह बकाया बढ़कर करीब 10 हजार करोड़ रुपए हो चुका है। इसमें सबसे ज्‍यादा बुरी खबर यह है कि यह रकम बढ़ते ही जा रही है।

बैंकों को बढ़ रहे एनपीए के बोझ का सता रहा डर

इनमें से कुछ मामलों में तो उर्जा उत्‍पादकों को भुगतान में होने वाली देरी 12 महीने से भी ज्‍यादा की है। ऐसे में इन कंपनियों के वर्किंग कैपिटल और कर्ज चुकाने की झमता पर बुरा असर पड़ा है। कर्जदाता बैंकों के लिए यह खतरे का सिग्‍नल है। कुल मिलाकर देखें तो सौर्य उर्जा कंपनियों की ओर से दी गई बिजली की सप्‍लाई का भुगतान करने में 15 से ज्‍यादा वितरण कंपनियां नाकाम रही हैं।

बता दें कि कर्जदाता बैंकों की चिंताएं यहीं खत्‍म नहीं होती है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले की वजह से टेलिकॉम सेक्‍टर में भी एक अनिश्चिताा का दौर आ गया है। अदालत ने एडजस्‍टेड ग्रॉस रेवेन्‍यू (एजीआर) विवाद मामले में टेलिकॉम विभाग के पक्ष में फैसला दिया है। जिसका अर्थ यह है कि टेलिकॉम कंपनियों को सरकार को करीब 92,500 करोड़ रुपए चुकाने होंगे।

आपको बता दें कि टेलिकॉम कंपनियों पर अचानक से आए इस आर्थिक बोझ में 40 प्रतिशत बकाया एयरसेल लिमिटेड और रिलायंस कम्‍यूनिकेशंस लिमिटेड जैसी कंपनियों पर हैं, जिनहोंने या तो धंधा समेट लिया या फिर दिवालिया होने की अर्जी दे रखी है। बांकी बकाया वोडाफोन आयडिया लिमिटेड और भारती एयरटेल लिमिटेड पर है, जिनसे सरकार को कुल 50 हजार करोड़ रुपए वसूलना है।

बता दें कि वोडाफोन आयडिया के लिए यह बड़ा संकट है क्‍योंकि जून तिमाही के अंत में इस कंपनी का नकदी बैलेंस महज 21,200 करोड़ रुपए था। कंपनी को सरकार की मांग पूरी करने के लिए 28,300 करोड़ रुपए की जरुरत है।

English summary

New Energy Firms & Telcos Stare At Default, NPA Fear Grips Banks

There is renewed nervousness among banks that lending to renewable power utilities and telecom companies over the last five years may turn bad.
Story first published: Wednesday, October 30, 2019, 11:49 [IST]
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