Budget में काफी चीजें शानदार, पर नहीं मिलेगा डिमांड को सहारा
नई दिल्ली, फरवरी 2। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए कल संसद में बजट पेश कर दिया गया। बजट को लेकर नेताओं और जानकारों के मत अलग-अलग हैं। अर्थव्यवस्था को महामारी के कारण मंदी से बचाने का प्रयास करते हुए केंद्रीय बजट में रिकवरी की गति को बनाए रखने के लिए फिजिकल और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर कम संसाधनों के सही खर्च को लेकर ध्यान दिया गया है। 5 राज्यों के चुनाव नजदीक होने के बावजूद केंद्रीय बजट -23 लोकलुभावनवाद के बजाय राजकोषीय सावधानी पर फोकस करता है। जानकारों का मानना है कि बजट में बेकार सब्सिडी और अनुत्पादक उपायों पर खर्च करने से बचा गया है। मगर इस सबके बावजूद जानकार मान रहे हैं कि ये बजट मांग को बढ़ाने वाला नहीं लग रहा।
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मांग बढ़ाने में पीछे
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार एक्सपर्ट के मुताबिक बजट ने इंफ्रा के उपायों और कॉरपोरेट कैपेक्स को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था की सप्लाई साइड पर फोकस किया है। मगर यह ओवरऑल मांग में सुधार को बढ़ावा देने के उपायों पर उम्मीदों से पीछे है।
नहीं उठाए गए पर्याप्त कदम
महामारी से उभरते हुए हालातों में, जहां शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, मांग को प्रोत्साहित करने के लिए अपर्याप्त प्रयास किए गए हैं। मांग पर निर्भर रहने वाले कई फैक्टर जैसे रोजगार सृजन, आय में वृद्धि, टैक्स में नरमी, मांग को बढ़ावा देने के लिए लोगों के पास डिस्पोजेबल आय में वृद्धि आदि पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
यहां भी रही कमी
वित्तीय समावेशन (फाइनेंशियल इंक्लूजन) के तहत छोटी फर्मों और कॉरपोरेट्स को बैंकिंग प्रणाली से अलग क्रेडिट बाजारों तक एक्सेस के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं। डेब्ट मार्केट्स का विस्तार और रिस्क कैपिटल तक एक्सेस में सुधार के लिए किसी संरचनात्मक उपाय की घोषणा नहीं की गई है।
और हो सकता था बेहतर
जानकार मानते हैं कि आर्थित नजरिये से यह बजट मांग को प्रोत्साहित करने के प्रयासों पर कम फोकस करता है, जो ओलरऑल ग्रोथ स्टेबिलिटी के लिए अधिक सहारा प्रदान कर सकता था।