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महाशय धर्मपाल गुलाटी : एक पाकिस्तानी के भारत में अमीर बनने की कहानी

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नई दिल्ली। एमडीएच मसाले आज कौन नहीं जानता है। लेकिन आपको पता है कि इस मसाले के पीछे की कहानी पाकिस्तान से लेकर भारत तक के सफर की है। 1500 रुपये और विस्थापितों जैसा जीवन शुरू करके वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी इस पूरी कहानी के प्रेरणा स्रोत हैं। हालांकि आज यह नाम जानमाना नाम है, लेकिन एक समय यह व्यक्ति पाकिस्तान से आकर दिल्ली में तांगा चला रहा था। लेकिन महाशय धर्मपाल गुलाटी ने मेहनत से हार नहीं मानी आज अपने पीछे सफलता की कई कहानियां छोड़ कर चले गए हैं। आज दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांसे लीं।
-महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म : 27 मार्च, 1923
-महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन : 3 दिसंबर 2020

जानिए महाशय धर्मपाल गुलाटी का शुरुआती जीवन

जानिए महाशय धर्मपाल गुलाटी का शुरुआती जीवन

महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट में हुआ था। यह हिस्सा आज पाकिस्तान में है। लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद उनको भारत आना पड़ा। उस समय उनके पास केवल 1,500 रुपये थे। हालांकि कहा जा सकता है कि उस वक्त 1500 रुपये बहुत होते थे, लेकिन दूसरे देश में एक सड़क पर खड़े व्यक्ति के लिए यह उतने पैसे भी नहीं थे, कि उनको अमीर मान लिया जाए। भारत आ गए तो घर परिवार की जिम्मेदारी पूरी करनी थी। इसके लिए उन्होंने इन 1500 रुपये से 650 रुपये का एक तांगा खरीदा। यह तांगा वह दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड के बीच चलाते थे। बाद में यह तांगा उन्होंने अपने भाई को दे दिया और खुल करोलबाग की अजमल खां रोड पर एक छोटा सी दुकान खोलकर मसाले बेचना शुरू किया। बाद में यहीं से उनका मसालों का किंग बनने का सफर शुरू हुआ। 

रोचक है उनके जीवन की कहानी

रोचक है उनके जीवन की कहानी

इस एक दुकान से मसाले का कारोबार शुरू होने के बाद तेजी से बढ़ता चला गया। इस वक्त उनका मसालों का कारोबार भारत के बाहर तक चल रहा है। दुबई में ही उनकी मसाले की 18 फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों में बना एमडीएच मसाला दुनिया के कई देशों में पहुंचता है। इस वक्त एमडीएच के पास 62 प्रॉडक्ट्स हैं। वहीं देश के उत्तरी भारत के एमडीएच का 80 प्रतिशत मसाला कारोबार पर एकाधिकार है।

अपने विज्ञापनों में खुद आत थे

अपने विज्ञापनों में खुद आत थे

महाशय धर्मपाल गुलाटी के अपने विज्ञापनों में आने की कहानी भी रोचक है। यह उन्होंने सोच समझ नहीं किया था। जब कारोबार शुरुआती दौर में था, तो एक दिन उनके मसालों के लिए विज्ञापन बनाया जा रहा था, लेकिन उस दिन विज्ञापन में बनी हीरोइन के पिता का रोल करने वाला नहीं आया। ऐसे में डायरेक्टर ने गुलाटी को ही यह काम करने का सुझाव दिया। उनको लगा कि कुछ पैसे भी बच जाएंगे और काम भी हो जाएगा। और उनकी यह सोच सही निकली। बाद में उनके चलते ही विज्ञापन इतने लोकप्रिय हुए कि एमडीएच मसालों की मांग बेतहाया बढ़ गई।

केवल 5वीं पास धरमपाल गुलाटी

केवल 5वीं पास धरमपाल गुलाटी

जीवन के संघर्ष के बीच धरमपाल गुलाटी की शिक्षा को ग्राहण लगा। लेकिन उन्होंने जीवन की कक्षा में अनुमाव से बहुत कुछ सीखा। धरमपाल गुलाटी पांचवीं के आगे नहीं पढ़ सके। हालांकि जीवन ने उनको काफी पढ़ा दिया। कारोबार में बड़े-बड़े दिग्गजों का कहना है कि उनमें बहुत क्षमता थी। शायद शिक्षा का महत्व उनसे ज्यादा कोई नहीं जानता था। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में 20 से ज्यादा स्कूल खोले और 1 अस्पताल भी बनवाया। यहां तक की वह अपनी सेलरी का काफी बड़ा हिस्सा भी दान देते थे। उनके इन्हीं कामों को देखते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले साल महाशय धर्मपाल गुलाटी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। 

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English summary

Mahashay Dharampal Gulati Story of a Pakistani coming to India and becoming rich

Mahashay Dharampal Gulati, owner of MDH Spices, did business in India from Pakistan, and became rich.
Story first published: Thursday, December 3, 2020, 11:42 [IST]
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