Digital Lending : आरबीआई ने तय किये नियम, अब ऐसे मिलेगा पैसा
नई दिल्ली, अगस्त 10। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और मोबाइल ऐप्स सहित वर्किंग ग्रुप ऑन डिजिटल लेंडिंग (डब्लूजीडीएल) पर प्राप्त इनपुट के आधार पर इसने डिजिटल लेंडिंग के माध्यम से लोन वितरण के व्यवस्थित विकास को सपोर्ट करने के लिए एक नियामक फ्रेमवर्क तैयार किया है। पैनल की स्थापना 13 जनवरी, 2021 को आरबीआई द्वारा की गई थी। फ्रेमवर्क इस सिद्धांत पर आधारित है कि उधार देने का बिजनेस केवल उन संस्थाओं द्वारा किया जा सकता है जो या तो केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित होते हैं। किसी अन्य कानून के तहत ऐसा करने की अनुमति पाने वाली संस्थाएं भी लोन बिजनेस कर सकेंगी।
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ऐसे होगी लोन की प्रोसेस
केंद्रीय बैंक ने कहा है कि सभी लोन वितरण और रीपेमेंट केवल उधारकर्ता और विनियमित इकाई के बैंक खातों के बीच होंगे। इसमें लोन सर्विस प्रोवाइडर या किसी थर्ड पार्टी के किसी भी पासथ्रू / पूल खाते की कोई भूमिका नहीं होगी। इसने यह भी कहा कि लोन सर्विस प्रोवाइडर को देय सभी शुल्क और चार्जेस का भुगतान बैंकों और नॉन-बैंकों को करना होगा, न कि उधारकर्ता द्वारा।
सारी कॉस्ट बतानी होगी
अपने डिजिटल लेंडिंग दिशानिर्देशों के तहत आरबीआई ने यह भी अनिवार्य किया है कि डिजिटल लेंडिंग की सभी लागतों को उधारकर्ताओं को बताना आवश्यक होगा। संस्थाओं को एक कूलिंग-ऑफ अवधि प्रदान करनी होगी, जिसके दौरान उधारकर्ता बिना किसी दंड के मूलधन और आनुपातिक लागत का भुगतान करके डिजिटल लोन से बाहर निकल सकते हैं।
नोडल ग्रीवेंस रिड्रेसल ऑफिसर की नियुक्ति
आरबीआई द्वारा विनियमित संस्थाओं को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा नियुक्त सभी लोन सर्विस प्रोवाइडर्स के पास डिजिटल लेंडिंग संबंधी शिकायतों को निपटाने के लिए एक उपयुक्त नोडल ग्रीवेंस रिड्रेसल ऑफिसर होगा। बैंकों और गैर-बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा ऑनबोर्ड किए गए डिजिटल लेंडिंग देने वाले ऐप उत्पाद सुविधाओं, लोन सीमा और शामिल लागतों से संबंधित जानकारी को प्रमुखता से डिस्प्ले करें।
ऐसे होंगी सिफारिशें लागू
पैनल की कुछ सिफारिशों को तत्काल लागू करने के लिए स्वीकार कर लिया गया है। कुछ को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है और आगे पूर्ण रूप से लागू करने की आवश्यकता होगी। तकनीकी जटिलताओं, इंस्टिटयूश्नल मैकेनिज्म की स्थापना और विधायी हस्तक्षेपों के मद्देनजर कुछ सिफारिशों के लिए केंद्र सरकार और अन्य स्टेकहोल्डरों के साथ बातचीत की आवश्यकता होगी।
हो सकती है शिकायत
पास की सिफारिशों की सूची के अनुसार, अब उधारकर्ता की स्पष्ट सहमति के बिना क्रेडिट सीमा को ऑटोमैटेज रूप से नहीं बढ़ाया जाएगा। यदि उधारकर्ता द्वारा दर्ज की गई कोई शिकायत विनियमित संस्थाओं (आरई) द्वारा निर्धारित अवधि (वर्तमान में 30 दिनों) के भीतर हल नहीं की जाती है, तो वे रिज़र्व बैंक - एकीकृत लोकपाल योजना (आरबी-आईओएस)7 के तहत शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इनका उद्देश्य ग्राहकों की सुरक्षा करना है।