फेल हो गए इमरान, पाकिस्तान को लगा इतना बड़ा झटका
वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए पाकिस्तान का वार्षिक राजकोषीय घाटा पिछले तीन दशकों में सबसे अधिक बढ़कर 8.9 प्रतिशत पर पहुंच गया है।
वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए पाकिस्तान का वार्षिक राजकोषीय घाटा पिछले तीन दशकों में सबसे अधिक बढ़कर 8.9 प्रतिशत पर पहुंच गया है। यह रिर्पोट पाकिस्तान के अखबार की वेबसाइट डॉन से ले गई है। बता दें कि इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बने एक साल पूरे हो गए हैं, लेकिन बीते एक साल में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर पहुंच गई है।
राजकोषीय घाटा संघीय सरकार के राजस्व और व्यय के बीच का अंतर है। जून में समाप्त होने वाले वर्ष में पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का घाटा बढ़कर 8.9 प्रतिशत हो गया। जबकि पिछले साल राजकोषीय घाटा 6.6 फीसदी था।
डॉन की रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान की आजादी के बाद अब तक का यह सबसे बड़ा फिस्कल डेफिसिट है। अगर आम भाषा में समझें तो मतलब साफ है कि सरकार की आमदनी घट गई और खर्चों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।
इमरान खान की सरकार की नाकामी का यह एक बड़ा सबूत है, क्योंकि सरकार ने अपने बजट घाटे को जीडीपी का 5.6 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य तय किया था। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के अनुसार, सरकार का बजट घाटा तय होने से 82 प्रतिशत बढ़ गया है। भारी भरकम बजट की वजह से 2019-20 का बजट दो महीने के भीतर ही अपनी अहमियत खो चुका है।
रिर्पोट के अनुसार इमरान खान सरकार ने पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी ज्यादा खर्च किया, लेकिन राजस्व में इस साल 6 फीसदी की गिरावट आई है। पाक वित्त मंत्रालय के मुताबिक, कर्ज और रक्षा बजट पर केवल 3.23 ट्रिलियन खर्च हुआ जो सरकारी राजस्व का कुल 80 प्रतिशत है।
सरकार जितना कमाती है या जो भी पैसा टैक्स और अन्य चीजों पर वसूलती है। उससे ज्यादा खर्च कर देती है। कमाई कम और ज्यादा खर्च के बीच जो अंतर आता है, उसे वित्तीय घाटा कहते हैं। सरकारी बैंकों के बारे में, विदेशी निवेशकों के पैसे के बारे में, बॉन्ड या सिक्योरिटीज जारी करके सरकार इस वित्तीय घाटे की भरपाई कर लेती है।