क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के ‘डबल रोल’ पर RBI का सवाल
आरबीआई ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के कामकाज में हितों का टकराव होने की ओर इशारा किया है।
नई दिल्ली: आरबीआई ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के कामकाज में हितों का टकराव होने की ओर इशारा किया है। आरबीआई 'रेटिंग एडवाइजर्स' की भूमिका को लेकर भी चिंतित है। ये अनरेगुलेटेड इकाइयां हैं जो कंपनियों और रेटिंग एजेंसियों के बीच ब्रोकर की तरह काम कर रही हैं।
जानकारी दें कि हाल में एक मीटिंग में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेटिंग एजेंसियों की दोहरी भूमिका पर सीधा सवाल किया था। यानी इसे किस तरह जायज ठहराया जाए कि वे किसी बॉन्ड की रेटिंग भी करें और उसी बॉन्ड का वैल्यूएशन भी तय करें। इस वैल्यूएशन का उपयोग म्यूचुअल फंड्स अपनी स्कीम की नेट एसेट वैल्यू की गणना में करते हैं।
आपको इस बात की जानकारी दें कि दास ने कहा था कि इन दो कारोबारों से हितों के टकराव की स्थिति बनती है। उन्होंने मीटिंग में मौजूद रेटिंग एजेंसियों के सीनियर अधिकारियों से पूछा था कि कंपनियों की रेटिंग्स से होने वाली कमाई में 'नॉन-रेटिंग एक्टिविटीज' का कितना हिस्सा रहता है।
बॉन्ड का वैल्यूएशन मार्केट में लिक्विडिटी पर भी निर्भर करता
हालांकि माना जा रहा है कि अगर कोई एजेंसी ये दोनों बिजनेस करती हो तो वह उस सिक्योरिटी को डाउनग्रेड करने का रुझान कम ही दिखाएगी। चर्चा से वाकिफ एक बैंकर ने ईटी से कहा, 'बॉन्ड का वैल्यूएशन मार्केट में लिक्विडिटी पर भी निर्भर करता है। अगर किसी बॉन्ड की प्राइस या वैल्यू नीचे जाए तो उसका असर रेटिंग पर भी पड़ सकता है। हालांकि दोनों काम कर रही एजेंसी हो सकता है कि रेटिंग डाउनग्रेड न करना चाहे या उसे निगरानी में न रखना चाहे क्योंकि ऐसा करने से इसका रेटिंग ट्रांजिशन और डिफॉल्ट स्टैटिस्टिक्स खराब दिख सकते हैं।
वहीं उनका कहना हैं कि बॉन्ड वैल्यूएशन बिजनस रेटिंग एजेंसियों के लिए बड़ा कारोबार नहीं है। लेकिन इसके जरिए फंड्स से उनके रिश्ते मजबूत होते हैं। म्यूचुअल फंड्स की रेटिंग करना इनके लिए एक अलग बिजनेस है।
मीटिंग के दौरान दास ने ये भी कहा था कि क्रेडिट रेटिंग एक अलग तरह का बिजनेस है जिसमें रेवेन्यू हासिल करना मुख्य उद्देश्य नहीं होना चाहिए।
रेटिंग एडवाइजर्स पर बनाया गया नोट
बता दें कि इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने बताया, 'आरबीआई के अधिकारियों ने रेटिंग एडवाइजर्स पर एक नोट तो बनाया, लेकिन इस विषय पर अपनी राय सामने नहीं रखी। पिछले 5-6 वर्षों में उभरीं ये एडवाइजर्स दरअसल छोटी कंपनियां हैं। इनमें से अधिकतर को रेटिंग एजेंसियों के पूर्व कर्मचारियों ने शुरू किया है। इश्यू देने वाली कंपनी इनकी क्लाइंट होती है। इन्हें ऐसी कंपनी के अलावा रेटिंग कंपनियों से भी कमीशन मिलता है। चूंकि ये क्लाइंट कंपनियों के ऑथराइजेशन के साथ रेटिंग एजेंसियों के पास पहुंचती हैं, लिहाजा एजेंसियां इन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखा सकतीं। हालांकि इस बात का शक रहता है कि ये गलत डेटा पेश करती हैं।
ऐसी एडवाइजर-इंटरमीडियरीज का सहारा मुख्य रूप से मझोले आकार की कंपनियां लेती हैं, जो बेहतर रेटिंग हासिल करने की ताक में रहती हैं। हाल में आईएलएंडएफएस के बॉन्ड्स को ट्रिपल ए (सबसे ऊंची रेटिंग) से महज 40 दिनों में डी ग्रेड (डिफॉल्ट ग्रेड) में डाउनग्रेड किए जाने से रेटिंग एजेंसियों की करतूतों पर ध्यान गया था।
26 मार्च को उद्योग मंडलों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक
इस बात से भी अवगत कराया गया कि RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास आर्थिक गतिविधियों को तेजी देने तथा ब्याज दर पर चर्चा करने के लिए 26 मार्च को उद्योग मंडलों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करेंगे। सूत्रों ने इसकी जानकारी दी है। सूत्रों ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति चार अप्रैल को अगले वित्त वर्ष की पहली बैठक करने वाली है।
RBI इस बैंक का नाम बदलने के पक्ष में नहीं ये भी पढ़ें
21 फरवरी को बैंकों के साथ की थी बैठक
इससे पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर ने 21 फरवरी को प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बैंक प्रमुखों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में उन्होंने नीतिगत ब्याज दर में कटौती के बाद बैंकों के कर्जों पर में कमी में देरी के कारणों पर चर्चा की। गौरतलब है कि आरबीआई के नीतिगत दरों में कटौती के बावजूद बैंक उस लाभ को आम लोगों तक पहुंचाने में पीछे रहे हैं, वे इसके लिए बड़े पैमाने पर एनपीए के लंबित होने और अन्य कारकों का हवाला देते रहे हैं।
RBI study: निजी क्षेत्र के निवेश लगातार सातवें वर्ष गिरावट ये भी पढ़ें