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सुपर आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है भारत

By राजीव रंजन रॉय (वरिष्ठ पत्रकार)
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विगत 70 वर्षों के दौरान भारत द्वारा आर्थिक क्षेत्र में की गई प्रगति को भी सर्वाधिक दिलचस्‍प सफल गाथाओं में शुमार किया जाता है। इस दौरान भारत के नीति निर्माताओं को अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जहां एक ओर देश में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं का अभाव रहा, वहीं दूसरी ओर आर्थिक विकास के लिए आवश्‍यक मानी जाने वाली लगभग प्रत्‍येक चीज की भी सख्‍त कमी महसूस की जाती रही। इससे साफ जाहिर है कि आर्थिक आजादी की दिशा में भारत की लम्‍बी यात्रा अनगिनत चुनौतियों से भरी हुई थी। हालांकि, हमारे संस्‍थापकों ने दृढ़ संकल्‍प दर्शाते हुए इन चुनौतियों का सामना किया और एक-एक ईंट को मजबूती से जोड़कर राष्‍ट्र का निर्माण किया। पंचवर्षीय योजना की अवधारणा सही दिशा में एक बड़ी अच्‍छी शुरुआत थी, जिसके तहत किसानों की मुश्किलों एवं गरीबी के उन्‍मूलन पर विशेष जोर दिया गया।

 

आर्थिक उदारवाद का दौर

आर्थिक उदारवाद का दौर

ऐसी अनेक समस्‍याएं थीं, जो कुछ ही वर्षों के भीतर आर्थिक प्रणाली में घर कर गई थीं। देश में कारोबारियों को कभी भी सहज माहौल नहीं मिल पाया। देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी इतना पर्याप्‍त नहीं रहता था, जिससे नीति निर्माताओं का भरोसा बढ़ता। इसी तरह देश में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रवाह भी काफी कमजोर था। इसका परिणाम यह हुआ कि जिस समय राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे, उस दौरान देश की अर्थव्‍यवस्‍था के उदारीकरण की मांग तेजी से जोर पकड़ने लगी थी। राजनीतिक उथल-पुथल के कारण देश की अर्थव्‍यवस्‍था में कुछ भी उत्‍साहवर्धक नजर नहीं आ रहा था। इस स्थिति में बदलाव तब आया, जब पी.वी. नरसिम्‍हा राव देश में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए। उन्‍होंने नियमों को उदार बनाकर विदेशी निवेशकों के लिए निवेश के द्वार खोल दिए और इसके साथ ही देश में आर्थिक उदारीकरण के युग का सूत्रपात हुआ। राजनीतिक अस्थिरता एवं करगिल युद्ध के कारण वर्ष 1996 से लेकर वर्ष 1999 तक की अवधि के दौरान देश में विदेशी निवेश के साथ-साथ घरेलू निवेश की गति भी मंद रही।

करगिल युद्ध के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था
 

करगिल युद्ध के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था

हालांकि, करगिल युद्ध की समाप्ति के बाद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था फिर से तेज रफ्तार पकड़ने लगी। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूरदर्शी नेतृत्‍व से ही यह उत्‍साहजनक आर्थिक परिदृश्‍य संभव हो पाया। उदारीकरण का ‘फील गुड फैक्टर' सही मायनों में नजर आने लगा। निवेश का प्रवाह तेज हो गया। इसके साथ ही सड़कों एवं विद्युत संयंत्रों सहित प्रमुख बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के वित्‍त पोषण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) के विनिवेश में नई गति आ गई। इसके बाद से ही भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। सच तो यह है कि वर्ष 2008 में गहराए वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान भी भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था तेज रफ्तार से विकास पथ पर निरंतर अग्रसर रही। ऊंची आर्थिक विकास दर की बदौलत भारत विश्‍व भर के निवेशकों की नजर में एक चमकीले गंतव्‍य के रूप में उभर कर सामने आया।

चीन को छोड़ा पीछे

चीन को छोड़ा पीछे

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती या विकासोन्‍मुख अर्थव्यवस्था बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लागू किए गए एक के बाद एक कई आर्थि‍क सुधारों की बदौलत देश में कारोबार करना अब और भी ज्‍यादा आसान हो गया है। यही कारण है कि आज भारत भी दुनिया की अग्रणी कंपनियों के लिए एक सर्वाधिक आकर्षक निवेश गंतव्‍य बन गया है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवत: पहली बार यह देखा जा रहा है कि दुनिया के शीर्ष सीईओ खुद से ही पहल करते हुए भारत में भारी-भरकम निवेश कर रहे हैं। सही मायनों में यह अद्भुत परिदृश्‍य है!

जीएसटी से मिलेगी नई दिशा

जीएसटी से मिलेगी नई दिशा

प्रधानमंत्री मोदी के विमुद्रीकरण के फैसले ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को नियमनिष्‍ठ बनाने के लिए मजबूत आधार तैयार किया। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था अनौपचारिक अथवा असंगठित क्षेत्र पर बहुत अधिक निर्भर होने के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई जो रोजगार का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता था लेकिन समय के साथ ऐसा नहीं हुआ जिसके कारण अर्थव्‍यवस्‍था को कर चोरी और श्रम कानूनों के उल्‍लंघन के रूप में भारी नुकसान उठाना पड़ा, जिसकी श्रम बल के अंतिम उत्‍पाद पर नकारात्‍मक असर पड़ा। इसी प्रकार से युगांतरकारी वस्‍तु और सेवा कर (जीएसटी) देश की अर्थव्‍यवस्‍था को नई गति प्रदान करेगा। इसका निवेश और वृद्धि पर सकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, " इस कर सुधार और नियोजित सब्सिडी का उन्‍मूलन आवश्‍यक है ताकि राजस्‍व का आधार मजबूत हो सके और वित्‍तीय आवरण का विस्‍तार किया जा सके जिससे बुनियादी ढांचा क्षेत्र, शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य सेवा में निवेश किया जा सके।"

आर्थिक लचीलापन

आर्थिक लचीलापन

दिवाला संबंधी नये कार्पोरेट ढांचे के लिए वित्‍तीय और अन्‍य सब्सिडियों (लाभ और सेवाएं) के नियोजित प्रतिपादन अधिनियम 2016, सब्सिडियों को युक्तिसंगत बनाने, दिवाला और दिवालियापन कोड 2016 के अधिनियमन और राष्‍ट्रीय कंपनी कानून न्‍यायाधिकरण (एनसीएलटी) का परिचालन आदि कुछ अन्‍य उपाय हैं जो देश की अर्थव्‍यवस्‍था में काफी लचीलापन लाएंगी।

भारत की आर्थिक वृद्धि

भारत की आर्थिक वृद्धि

विश्‍व बैंक ने भविष्‍यवाणी की है कि 2017-18 के दौरान भारत की वृद्धि 7.7 प्रतिशत रहेगी जो इस बात को बल प्रदान करती है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की नीव काफी मजबूत है और नीतिगत ‘बाधाओं' के पश्‍चात झटकों को सह सकती है। भारत के पास काफी तेज गति से आगे बढ़ने की संभावना है यदि केन्‍द्र औद्योगिक और निर्माण क्षेत्रों की चिंता करे। आईएमएफ ने भी लंबित ढांचागत अवरोधों को हटाने की जरूरत पर बल दिया है ताकि बाजार की क्षमता में सुधार हो। भारत की अर्थव्‍यवस्‍था 2015-16 में 7.6 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी थी। विश्‍व बैंक के अनुसार भारत का सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) 2017 में 7.7 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है, जिसमें " कृषि में पलटाव की संभावनाओँ, लोक सेवा , वेतन सुधारों से समर्थित उपभोग निर्यातों से बढ़ते हुए सकारात्मक योगदानों और मध्यम अवधि में निजी निवेश की पुनः प्राप्ति शामिल है।" भारत की हाल की वृद्धि दर जो वार्षिक स्तर पर 7 प्रतिशत से अधिक है वह जी-20 देशों के बीच सबसे मजबूत है।

ढांचागत सुधारों में हुई तेजी

ढांचागत सुधारों में हुई तेजी

हाल ही में हुए भारत के ओईसीडी आर्थिक संर्वेक्षण-2017 में पाया गया कि ढांचागत सुधारों में तेजी और नियम आधारित वृह्द आर्थिक नीति ढांचे की दिशा में कदम ने देश के पुराने त्वरित आर्थिक विकास को जारी रखा है। एफडीआई के व्यापक दायरे के लिए नियमों को उदार बनाने से नौकरियां और रोजगार सृजन में एक तरह की तेजी आएगी लघु नकारात्मक सूची को छोड़कर प्रधानमंत्री ने यह सुनिश्चत कर दिया है कि स्वयं गतिशील स्वीकृत मार्ग के जरिए सभी क्षेत्रों को एफडीआई का लाभ मिलेगा। एक अनुमान के अनुसार अप्रैल-दिसंबर, 2016-17 के दौरान एफडीआई अन्तर्वाह बढ़कर 31.18 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 27.22 अरब अमेरिकी डॉलर था। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 24 मार्च, 2017 को 367.93 अरब अमेरिकी डॉलर था जिसमें चालू खाता घाटा 2014-15 और 2015-16 में 1.3 प्रतिशत और 1.1 प्रतिशत के स्तर पर था।

सकल वित्तीय घाटा कम हुआ

सकल वित्तीय घाटा कम हुआ

यदि हम अन्य आर्थिक संकेतकों को देखें तो अनेक चीजें प्रसन्न करने वाली है। भारत का सकल वित्तीय घाटा 2016-17 में 3.5 प्रतिशत पर सीमित रहा। वर्ष 2017-18 में सकल वित्तीय घाटा 3.2 प्रतिशत पर स्थिर रहा जिसे अगले वर्ष 3 प्रतिशत तक हासिल करने की प्रतिबद्धता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार गुणवत्ता के साथ व्यय और अधिक कर राजस्व प्राप्त करने पर निरंतर ध्यान देकर वित्तीय लचीलापन बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत आर्थिक क्षेत्र में कुछ और सफलताएं हासिल करने की तैयारी कर रहा है और आर्थिक श्रेष्ठता का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस समय डेली पोस्ट, चंडीगढ़ में कार्यरत हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।
(साभार-PIB)

 

English summary

India, emerging as super economic power

India’s economic advancement in the past 70 years is one of the most fascinating success stories PM Modi’s demonetisation decision has created a solid ground for the formalization of Indian economy.
Story first published: Sunday, August 20, 2017, 17:22 [IST]
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