बैंक कर्मचारी 6 महीने में सीखें कन्नड़ या छोड़ दें नौकरी: सिद्धारमैया
कन्नड़ विकास प्राधिकरण ने एक तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा है कि बैंको में कार्यरत सभी गैर कन्नड़ भाषी 6 महीने में कन्नड़ सीखें।
कन्नड़ विकास प्राधिकरण ने एक तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा है कि बैंको में कार्यरत सभी गैर कन्नड़ भाषी 6 महीने में कन्नड़ सीखें या फिर नौकरी छोड़ दें। कन्नड़ विकास प्राधिकरण ने सभी राष्ट्रीयकृत बैंक और ग्रामीण बैंकों में कार्यरत गैर कन्नड़ लोगों से हर हाल में 6 महीने में कन्नड़ सीखने के लिए कहा है।
6 महीने में सीखें कन्नड़
केडीए के अध्यक्ष एस जी सिद्धारमैया ने बैंको को लिखे पत्र में कहा है कि उम्मीदवारों का चयन IBPS यानि कि इंस्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन के जरिए होता है जिसमें IBPS को यह स्पष्ट रुप से लिखता है कि चयन में उन उम्मीदवारों को तरजीह दी जाएगी जो स्थानीय भाषा जानते हैं। सिद्धारमैया ने आगे कहा कि इसे देखते हुए बैंको में कार्य करने वाले कर्मचारियों को 6 महीने में अनिवार्य रुप से कन्नड़ भाषा सीख लेनी चाहिए।
बैंगलुरु में ज्यादा हैं गैर कन्नड़ भाषी
द हिंदू समाचार पत्र में प्रकाशित एक आंकड़े के मुताबिक बैंगलोर (बेंगलुरू) गैर कन्नड़ भाषी लोगों की संख्या ज्यादा है। सिर्फ 41.54 फीसदी लोग ही कन्नड़ भाषी हैं। जबकि 18.43 फीसदी लोग तमिल भाषी हैं। 15.47 फीसदी तेलुगू और 12.90 फीसदी उर्दू भाषी लोग हैं। बेंगलुरू में 3.41 फीसदी लोग हिंदी भाषी हैं। इनकी संख्या 1 लाख 27 हजार से ज्यादा है। इसके अलावा 2.95 फीसदी मलयाली भाषी, 2.22 फीसदी मराठी भाषी और 0.71 फीसदी कोंकणी भाषी हैं जबकि 3.18 फीसदी अन्य भाषा के लोगों हैं जिसमें नेपाली, कश्मीरी, उड़िया आदि हैं। इस आंकड़े में हम उर्दू बोलने वालों और हिंदी बोलने को अलग-अलग देख सकते हैं पर दोनों ही भाषाओं के लोग एक दूसरे अच्छी तरह से बात कर सकते हैं। हां ये फर्क जरूर है कि कर्नाटका में रह रहे उर्दू भाषी हिंदी लिपी को आसानी से समझ नहीं पाते हैं। इस लिहाज से यदि देखा जाए तो हिंदी-उर्दू बोलने वाले लोगों की संख्या तेलुगू भाषी लोगों से ज्यादा होगी।
मेट्रो स्टेशन पर हिंदी नाम को ढंका
हाल ही में बेंगलुरु मेट्रो शुरु होने पर तमाम संगठनों ने बेंगलुरु मेट्रो से स्टेशन के नाम हिंदी में लिखे जाने का विरोध किया। ऐसा नहीं है कि मेट्रो स्टेशन के नाम सिर्फ हिंदी में लिखे हैं। मेट्रो स्टेशन के नाम पहले कन्नड़ फिर इंग्लिश और बाद में हिंदी में लिखे हुए हैं। संगठनों ने हिंदी भाषा का विरोध करते हुए तमाम आंदोलन किए और मेट्रो स्टेशन पर हिंदी में लिखे हुए नामों को काले पेंट से रंग दिया या फिर उस पर टेप चिपका दिया।
कन्नड़ में लिखा हुआ चेक हुआ था कैंसिल
एक अन्य घटना क्रम में एक व्यक्ति ने कन्नड़ में लिखा हुआ चेक आईसीआईसीआई बैंक में जमा कर दिया था जिसे बैंक ने खारिज कर दिया था। व्यक्ति के मुताबिक उसने सारी जानकारी सही भरी थी फिर भी बैंक ने चेक कैंसिल कर दिया। अब वह व्यक्ति बैंक की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट गया है।
अलग झंडे की कर चुके हैं मांग
इसके अलावा कर्नाटका की सिद्धारमैया सरकार राज्य के लिए अलग झंडे की मांग कर चुकी है। इसके लिए राज्य सरकार ले लाल-पीले रंग के एक झंडे का सुझाव दिया है जिसे राष्टीय ध्वज के साथ लगाया जाएगा। केंद्र ने राज्य की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। वहीं लोगों ने भी इसका विरोध किया। साथ ही यह भी कहा कि कोई भी ध्वज राष्ट्र ध्वज के बराबर नहीं हो खड़ा हो सकता है उसे राष्ट्र ध्वज से थोड़ा नीचे ही रहना होगा। क्योंकि यदि कोई अन्य ध्वज राष्ट्र ध्वज के बराबर खड़ा होगा तो ये राष्ट्र ध्वज का अपमान होगा।
क्या KDA को इस तरह के फरमान जारी करने की शक्ति है?
जानकारों के मुताबिक कन्नड़ विकास प्राधिकरण यानि कि KDA को इस तरह का फरमान जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। केडीए सिर्फ लोगों के बीच अपनी राजनीति चमकाने का काम कर रहा है।