MSME को बचाने के लिए शुरू हुआ नया प्लान, जानिए पूरी डिटेल
नयी दिल्ली। कंसोर्टियम ऑफ इंडियन असोसिएशन (सीआईए), देश भर में 30 से अधिक एसोसिएशंस का एक प्लेटफॉर्म, ने 'सेव एमएसएमई' अभियान शुरू किया है। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) के लिए 'डिस्ट्रेस्ड एसेट्स फंड्स-सबोर्डिनेट डेब्ट' स्कीम लॉन्च की थी। यह सबोर्डिनेट लोन के लिए क्रेडिट गारंटी योजना है, जिससे 2 लाख एमएसएमई को राहत मिलेगी। इस योजना के तहत एमएसएमई के प्रमोटरों को बैंकों से लोन मिलेगा, जिसे बाद में वे इक्विटी निवेश के रूप में फर्म में लगाएंगे। सबोर्डिनेट क्रेडिट स्कीम का मुख्य उद्देश्य एमएसएमई को परिचालन खर्चों को पूरा करने में मदद करना है और उन व्यवसायों को फिर से शुरू करना है जो कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
कमजोर एमएसएमई को मिले पैसा
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार सीआईए के प्रवक्ता केई रघुनाथन कहते हैं कि यदि सरकार का इरादा दबावग्रस्त कंपनियों की मदद करना है तो यह जरूरी है कि उन कंपनियों में पैसा न लगाया जाए जिनकी रिकवरी पहुंच से बाहर है। उनके मुताबिक बेहतर फॉर्मेट ये होगा कि दबाव वाली कंपनियों से घोषणा करवा ली जाए कि उनमें से कौन से कारोबार जारी रखनी चाहती है और कौन सी कंपनी समाप्त होना चाहती है।
क्या होनी चाहिए सरकार की नीति
रघुनाथन ने आगे कहा कि यदि कोई कंपनी समाप्त करना चाहती है तो बेहतर है कि उन्हें वन-टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) दिया जाए और उन्हें पुनः आरंभ करने के लिए क्लीन चिट दे दी जाए। ओटीएस में 1 मार्च 2020 तक के प्रिंसिपल का भुगतान, सभी टैक्स दंड ब्याज और मुकदमेबाजी की लागत माफ की जा सकती है। इसी तरह जो कंपनी दबाव के बावजूद कारोबार जारी रखना चाहती है बैंक उनसे रिवाइवल योजना के बारे में पूछ सकते हैं और उन्हें मौजूदा लोन का पुनर्गठन, अतिरिक्त इक्विटी और कर्ज लेने की क्षमता बढ़ाने और दंड ब्याज से छूट दी जा सकती है।
सीआईए ने मांगा सरकार से जवाब
सीआईए ने उस योजना के संबंध में सरकार से कई स्पष्टीकरण मांगे हैं। इसमें पात्रता और चयन प्रोसेस शामिल है। सबसे बड़ी चिंता यह बै कि क्या कंपनी में डाले गए अतिरिक्त पैसे का उपयोग बैंकों द्वारा अपने तनावग्रस्त खाते (एनपीए) के नियमितीकरण के लिए किया जाएगा।
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