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MSME : कभी नहीं थे बेटी के जूते खरीदने के पैसे, आज पूरी दुनिया में फैला है जूतों का बिजनेस

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नई दिल्ली, जुलाई 17। माता-पिता का प्यार ही एकमात्र वो प्यार है जो पूरी तरह से निस्वार्थ होता है। इस दुनिया में माता-पिता के प्यार को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, जो सभी दर्द सहन करते है और चुनौतियों में परेशानी उठाते हैं, मगर अपने बच्चों को कोई तकलीफ नहीं पहुंचने देते। उनके बलिदान करने की शक्ति कल्पना से परे है। मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि माता-पिता चाहते हुए भी अपने बच्चों की कोई ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाते। एक समय ऐसी ही स्थिति मोइरंगथम मुक्तामणि देवी की थी, जब वे अपनी बेटी के लिए जूते नहीं खरीद पाई थीं। मगर आज उनके जूतों का कारोबार दुनिया भर में फैला है। जानते हैं उनके साहस और कामयाबी की कहानी।

MSME : सिटी लाइफ छोड़ी और शुरू किया सोशल बिजनेस, अब कमाती हैं लाखों रुMSME : सिटी लाइफ छोड़ी और शुरू किया सोशल बिजनेस, अब कमाती हैं लाखों रु

खुद बुने जूते

खुद बुने जूते

मुक्तामणि एक बार अपनी बेटी के लिए जूते नहीं खरीद पाई थीं। फिर उन्होंने ऊनी जूते बुनना शुरू कर दिया, जिससे वह मणिपुर की एक प्रसिद्ध कारीगर जूता कारोबारी बन गईं। अपने बच्चों को पालने के लिए एक साधारण महिला ने अपनी प्रतिभा को प्रोफेशन में बदल दिया। मुक्तामणि का जन्म दिसंबर 1958 में हुआ था और उनका पालन-पोषण उनकी विधवा मां ने किया। वह केवल 17 वर्ष की थी जब उनकी शादी हो गयी उनके चार बच्चे हैं। अपने बच्चों का भरण-पोषण करने और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए, मुक्तामणि दिन में धान के खेत में काम करती थीं और शाम को घर का खाना बेचती थीं।

एक्स्ट्रा कमाई के लिए की कड़ी मेहनत

एक्स्ट्रा कमाई के लिए की कड़ी मेहनत

बुनाई की कला में कुशल होने के चलते वह रात में कैरी बैग और हेयर बैंड बनाती थी और अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए उन्हें बेच देती थी। 1989 में उनके पास अपनी बेटी के लिए नए जूते खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। इस बात उन्हें झटका लगा। इसलिए उन्होंने ऊनी धागों से एक जूता बुना। हालाँकि उनकी बेटी थोड़ी चिंतित और डरी हुई थी, क्योंकि स्कूल में ऐसे जूतों की अनुमति नहीं थी।

टीचर को आया पसंद

टीचर को आया पसंद

उनकी बेटी के जूते टीचर को बहुत पसंद आए। उसके शिक्षक ने पूछा कि जूते कहाँ से खरीदे, क्योंकि वह अपने बच्चे के लिए भी एक जोड़ी ऐसे ही जूते चाहती थीं। यहीं से मुक्तामणि के कारोबार की शुरुआत हुई। केनफोलियोज की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने 1990 में मुक्ता शूज़ की स्थापना की। अब उनके प्रोडक्ट ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, मैक्सिको और यहां तक ​​कि कुछ अफ्रीकी देशों में भी निर्यात होते हैं। उनकी कंपनी कुछ ही समय में मशहूर हो गई। मुक्तामणि के लिए एक माँ होने और एक ही समय पर एक कारोबारी होना आसान नहीं था।

बिजनेस में भी आई दिक्कत

बिजनेस में भी आई दिक्कत

उन्हें बिजनेस के लिए पैसा जुटाने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की लगातार देखभाल करनी थी। सालों तक उनके कड़े संकल्प ने संघर्ष के जीवन से बाहर निकाला और उनके बिजनेस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया।

जीते कई अवॉर्ड

जीते कई अवॉर्ड

आज मुक्तामणि एक कामयाब बिजनेसवुमेन हैं। उन्हें 2006 में सिटी ग्रुप माइक्रो एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड, 2008 में नेशनल माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज अवार्ड, 2008-09 में मणिपुर स्टेट अवॉर्ड टू मास्टर क्राफ्ट्समैन और वसुंधरा - एनई वूमेन एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर 2013-14 जैसे कई पुरस्कार मिले।

English summary

MSME once had no money to buy shoes for daughter today her business is spread all over world

Muktamani once could not buy shoes for her daughter. She then started weaving woolen shoes, making her a well-known artisan shoe trader in Manipur.
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