Public Provident Fund : क्या PPF के ये नियम जानते हैं आप
नयी दिल्ली। पब्लिक प्रॉविडेंट फंड या पीपीएफ अकाउंट सभी निवेशकों के लिए सबसे बेहतर विकल्पों में से एक है। इसकी वजह है मौजूदा टैक्स सिस्टम के तहत सेक्शन 80 सी के तहत पीपीएफ में निवेश पर मिलने वाली टैक्स छूट। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पीपीएफ एक ईईई कैटेगरी का निवेश ऑप्शन है। ईईई का मतलब है कि इसमें निवेश राशि, मैच्योरिटी राशि और मिलने वाली ब्याज राशि तीनों पर टैक्स से आजादी मिलती है। पीपीएफ एक सरकारी योजना है इसलिए ये सुरक्षित है। साथ ही इस पर आपको अच्छा रिटर्न भी मिलता है। हालांकि इस स्कीम की ब्याज दरों में हाल ही में कटौती की गई है। कोरोना के कारण इकोनॉमी प्रभावित हो रही है, जिसे देखते हुए सरकार ने पीपीएफ सहित कई योजनाओं की ब्याज दर कम कर दी है। मगर ये अभी भी वैश्विक इक्विटी और कमोडिटी बाजारों में मौजूदा उथल-पुथल को देखते हुए काफी सुरक्षित निवेश ऑप्शन रहेगा। अगर आप भी पीपीएफ में निवेश करने की सोच रहे हैं तो आपको पहले इसके नियमों को जानना होगा।
लोन पर मुकदमे में सलामत रहेगा पीपीएफ बैलेंस
पीपीएफ के इस खास नियम पर ध्यान देना जरूरी है। पीपीएफ सब्सक्राइबर के सामने अगर किसी भी लोन या देनदारियों के मामले में मुकदमे का सामना करना पड़े तो उसके पीपीएफ खाते की शेष राशि को जब्त नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि यदि कोर्ट भी ऑर्डर दे दे तो भी पीपीएफ खाते में उसका बैलेंस बरकरार रहेगा। यानी आपकी बाकी संपत्ति को कुछ भी हो मगर ऐसी स्थिति में आपका पीपीएफ बैलेंस सलामत रहेगा। यह पीपीएफ निवेशक के लिए एक बहुत बड़ी राहत की बात है।
आयकर नोटिस के मामले में राहत नहीं
मगर यदि पीपीएफ अकाउट होल्डर को किसी डेब्ट या देनदारी के मामले में आयकर की तरफ से नोटिस मिले तो उसका पीपीएफ बैलेंस खतरे में आ सकता है। पीपीएफ के उस नियम के बारे में आपको स्पष्ट जानना चाहिए जो कोर्ट के आदेश के मामले में डेब्ट या देनदारी पर तो आपके पीपीएफ बैलेंस की हिफाजत करेगा, मगर इनकम टैक्स नोटिस के मामले में आपको परेशानी हो सकती है। यह एक तरह का स्पष्टीकरण है कि आपका पीपीएफ बैलेंस किस स्थिति में सुरक्षित रहेगा और किस में नहीं।
कितनी होती है मैच्योरिटी अवधि
ध्यान रहे कि पीपीएफ स्कीम में मैच्योरिटी अवधि 15 साल ही होती है। इसके पूरे होने के बाद आप चाहें तो 5-5 सालों के लिए इसे बढ़ा सकते हैं। इसके लिए आपको पोस्ट ऑफिस के अलावा संबंधित बैंक में आवेदन करना होगा। आवेदन में मैच्योरिटी वाले साल में फॉर्म 15एच भरना होता है। वैसे ये भी गौर करने वाली बात है कि सरकार हर तिमाही के लिए पीपीएफ और ऐसी ही कई स्कीम के लिए ब्याज दर की समीक्षा करती है। इनमें घटाव-बढ़ाव भी चलता रहता है।
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