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कोरोना इफेक्ट से बची रही टॉफी सिटी, जानिए कारोबार का गणित

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नई दिल्ली। देश में बहुत से लोगों को शायद इस बात की जानकारी न हो कि मध्य प्रदेश का शहर ग्वालियर टाफी सिटी है। यहां पर 20 से लेकर 25 टाफी के कारखाने अच्छी खासी मात्रा में टॉफी बनाते हैं। यह टॉफिया इतनी फेमस हैं कि आसपास के कई राज्यों में हाथों हाथ बिक जाती हैं। इसके चलते ग्वालियर में टॉफी का कारोबार सालाना 30 से लेकर 35 करोड़ रुपये तक हो जाता है। हालांकि कोरोना कॉल में इस पर भी मार पड़ी, लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि जैसे ही लॉकडाउन खुला, यह कारोबार फिर से चल पड़ा है।

 

आर्डर का फिर लगा अंबार

आर्डर का फिर लगा अंबार

ग्वालियर के टॉफी कारोबारियों के पास फिर से आर्डर का अंबार लग गया है। इसके अलावा लोकल लेबर की व्यवस्था होने के कारण यह कंपनियां अपनी पूरी क्षमता से काम कर पा रही हैं। यही कारण है कि लॉकडाउन खुलते ही यह कारोबार फिर से दौड़ने लगा है। ग्वालियरमें बनी मुलायम टॉफियां उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में खूब बिकती हैं। 

रोज बनती हैं 50 टन तक टॉफियां

रोज बनती हैं 50 टन तक टॉफियां

ग्वालियर की टॉफियों की मांग कितनी है यह बात जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि यहां पर रोज कितनी टॉफियां बनती हैं। एक अनुमान के अनुसार ग्वालियर में रोज 40 से लेकर 50 टन तक टॉफियां बनती हैं। इसके चलते कररीब 30 करोड़ रुपये से लेकर 35 करोड़ रुपये तक का सालाना कारोबार हो जाता है। 

3000 लोगों को मिलता है कारोबार
 

3000 लोगों को मिलता है कारोबार

ग्वालियर के टॉफी कारोबार से बड़ी संख्या में रोजगार भी पैदा होता है। एक अनुमान के अनुसार ग्वालियर में टॉफी कारोबार से सीधे तौर पर करीब 3,000 लोग रोजगार पाते हैं। इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि इस काम में ज्यादातर कारीगर और मजदूर स्थानीय ही हैं, इसलिए श्रमिकों की किल्लत का सामना इस उद्योग को नहीं करना पड़ रहा है। यही कारण है कि ऑर्डर पूरे करने लायक टॉफियां यहां अब भी बन रही हैं।

ये है ग्वालियर की टॉफियों के टेस्ट का नुस्खा

ये है ग्वालियर की टॉफियों के टेस्ट का नुस्खा

जानकारों का कहना है कि ग्वालियर में जैसी मुलायम टॉफियां पूरे देश में कहीं नहीं बनतीं हैं। इन टॉफियों को मुलायम बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में वसा का अच्छा खासा इस्तेमाल करना पड़ता है। मगर ग्वालियर का पानी खुद ही टॉफी को मुलायम कर देता है। इसीलिए देश के दूसरे हिस्सों में बनाने वाली टॉफियों में मुलायमियत के लिए अगर 100 किलो ग्राम कच्चे माल में 10 किलो वसा डालनी पड़ती है, तो ग्वालियर में 2 किलो वसा में ही काम चल जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि लागत घट जाती है। यही कारण है कि टॉफी की थोक कीमत 10 पैसे से 50 पैसे तक आती है। इन टॉफियों को बाद में बाजार में 50 पैसे से 1 रुपये तक में बेचा जाता है। टॉफी के सस्ते होने के चलते ही उद्योग पर लॉकडाउन का अधिक असर नहीं पड़ा।

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English summary

No effect of lockdown on Gwalior toffee business toffee in hindi candies in hindi

The lockdown enforced after the Corona epidemic did not affect the toffee business in Gwalior.
Story first published: Wednesday, July 29, 2020, 13:24 [IST]
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