विदेशी शेयरों में कर रहे निवेश, तो इन बातों का जरूर रखें ध्यान, वरना होगा नुकसान
नई दिल्ली, फरवरी 13। निवेशक, चाहे छोटे हों या बड़े, हमेशा अपने पोर्टफोलियो में विविधीकरण की तलाश में रहते हैं। कुछ के लिए निवेश में विविधीकरण को हासिल करने का एक बेहतर तरीका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना है। विविधीकरण का मतलब है कि सारा पैसा एक जगह न निवेश करके अलग अलग जगह और ऑप्शनों में निवेश किया जाए। घरेलू इक्विटी में निवेश के अलावा निवेशक विदेशी इक्विटी में निवेश करने के विकल्पों की तलाश करते हैं और ऐसा करने का सबसे आसान तरीका म्यूचुअल फंड होता है। इस समय किसी म्यूचुअल फंड के माध्यम से विदेशी इक्विटी में निवेश को सेबी की 7 अरब डॉलर की सीमा के कारण निलंबित कर दिया गया है, जिसके जल्द ही बढ़ने की उम्मीद है। यदि आप भी विदेशी शेयरों में निवेश करते हैं या निवेश करने की सोच रहे हैं तो कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
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क्या क्या हैं मौके
एक अच्छी तरह से जानकार निवेशक स्पेसिफिक स्टॉक/ईटीएफ में सीधे निवेश कर सकता है। यहां हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि कोई निवेशक डायरेक्ट स्टॉक पिकिंग रूट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश कैसे कर सकता है और इसकी तुलना में म्यूचुअल फंड के रूट से निवेश करना कैसा है। यानी आप डायरेक्ट और म्यूचुअल फंड के जरिए विदेशी इक्विटी में निवेश कर सकते हैं।
कौन देता है निवेश का मौका
विदेशी बाजारों में प्रत्यक्ष निवेश की सुविधा के लिए, कुछ भारतीय ब्रोक्रेज / प्लेटफार्मों ने विदेशी ब्रोक्रेज के साथ करार किया है। उदाहरण के लिए आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने इंटरएक्टिव ब्रोकर्स एलएलसी के साथ करार किया है। इसके अलावा, वेस्टेड, स्टॉकल और ग्रो जैसे प्लेटफॉर्म भी अपने उपयोगकर्ताओं को विदेशी बाजार में निवेश करने देते हैं। निवेशक के लिए उपलब्ध एक अन्य विकल्प विदेशी ब्रोकर के साथ सीधे खाता खोलना है, जो भारत में अपनी सेवाएं देते हैं। हालांकि तब ये सुनिश्चित करें कि विदेशी ब्रोकर सिक्योरिटीज इन्वेस्टर प्रोटेक्शन कॉरपोरेशन (एसआईपीसी) का सदस्य हो, क्योंकि यह ब्रोकर के दिवालिया होने की स्थिति में उपयोगकर्ता के खाते को 500,000 डॉलर तक का बीमा मुहैया करता है।
कितना कर सकते हैं निवेश
ब्रोकर के माध्यम से डायरेक्ट निवेश आरबीआई के एलआरएस (उदारीकृत प्रेषण योजना) के अंतर्गत आता है। यह फोरेन करेंसी रेमिटेंस से संबंधित है जो भारतीय निवासी करते हैं। इस योजना के तहत, एक भारतीय नागरिक को सालाना 250,000 डॉलर तक निवेश करने की अनुमति होती है। यह योजना म्यूचुअल फंड को कवर नहीं करती है क्योंकि वे एक भारतीय निवेशक के नजरिए से घरेलू निवेश हैं। इसके अलावा, म्यूचुअल फंड के माध्यम से निवेश करते समय लागत को एक अनुपात में कंप्रेस्ड कर दिया जाता है। वहीं डायरेक्ट ट्रेडिंग में प्रति लेनदेन ब्रोकरेज शुल्क के साथ ट्रांसफर और रेमिटेंस (लगभग 1-2 प्रतिशत) पर बैंक शुल्क लगता है। किसी वित्तीय वर्ष में रेमिटेंस राशि 7 लाख रुपये या उससे अधिक होने पर ये लेनदेन 5 प्रतिशत टीडीएस (बैंकों द्वारा) के अधीन भी हो सकती है।
जानिए टैक्स का नियम
म्यूचुअल फंड के माध्यम से विदेशी इक्विटी में निवेश को डेट फंड के रूप में माना जाता है, जबकि डायरेक्ट निवेश पर टैक्सेशन उद्देश्यों के लिए नॉन-लिस्टेड शेयरों के रूप में माना जाता है। जब डायरेक्ट ट्रेड किया जाता है, तो खरीदी गई फाइनेंशियल एसेट्स की डिटेल आईटीआर में अलग से बतानी होती है।
ये भी जानना जरूरी
ध्यान देने वाली एक प्रमुख बात यह है कि डायरेक्ट निवेश के मामले में, यदि भारतीय निवेशक की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो जाती है, तो विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश पर उत्तराधिकार टैक्स लगाया जाएगा।