मुंबई में 5.5 लाख की बिकी घोल मछली
वक्त और किस्मत बदलते देर नहीं लगता हैं इसका उदहारण मुंबई के दो मछुआरे भाई हैं जो एक ही दिन में लखपति बन गए। शायद उन भाईयों को भी अंदाजा नहीं था कि उनकी किस्मत इस तरह बदलने वाली है।
वक्त और किस्मत बदलते देर नहीं लगता हैं इसका उदहारण मुंबई के दो मछुआरे भाई हैं जो एक ही दिन में लखपति बन गए। शायद उन भाईयों को भी अंदाजा नहीं था कि उनकी किस्मत इस तरह बदलने वाली है।
मुंबई, महाराष्ट्र के पालघर में एक मछली की इतनी कीमत लगी है जो हैरान करने वाली है। बता दें यहां एक मछली साढ़े पांच लाख रुपए में बिकी है। पालघर में घोल मछली को रिकॉर्ड कीमत मिले हैं। एक मछली साढ़े पांच लाख में खरीदा गया है। घोल मछली के फेफड़े और स्किन का इस्तेमाल दवाईयां और कॉस्मेटिक तैयार किया जाता है। महेश और भरत मेहर इन दो मछुआरों भाईयों ने इस घोल मछली को पकड़ा था।
मछली का वजन 30 किलो
बताया जा रहा है कि इस मछली का वजन 30 किलो है। वहीं दोनों मछुआरे इस मछली को पालघर मछली मार्केट में इसे बेचने पहुंचे थे। शुरू से ही दोनों इसकी ऊंची कीमत लगाए हुए थे। देखते ही देखते यह बात पूरी मार्केट में फैल गई और आखिरकार इसकी कीमत साढ़े पांच लाख रुपए लगाई गई। घोल मछली के शरीर का हर हिस्सा मेडिकेशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
घोल मछली क्यों इतनी खास
घोल मछली खाने में स्वादिष्ट तो होती ही है। इस मछली में चमत्कारी औषधीय गुण पाए जाते हैं जिसके कारण पूर्वी एशिया में इसकी कीमत बहुत ज्यादा है। यहां तक कि घोल (ब्लैकस्पॉटेड क्रॉकर, वैज्ञानिक नाम प्रोटोनिबा डायकांथस) को 'सोने के दिल वाली मछली' के रूप में भी जाना जाता है। बाजार में अलग-अलग मछली की अलग-अलग कीमतें होती हैं। वहीं यह मछली मुख्यत: सिंगापुर, मलयेशिया, इंडोनेशिया, हॉन्ग-कॉन्ग और जापान में निर्यात की जाती है। घोल मछली जो सबसे सस्ती होती है उसकी कीमत भी 8,000 से 10,000 तक होती है।' मई में भायंदर के एक मछुआरे विलियम गबरू ने यूटान से एक मंहगी घोल पकड़ी थी। वह मछली 5.16 लाख रुपये में बिकी थी।
दावाईयों और कॉस्मेटिक में घोल मछली का प्रयोग
घोल मछली की स्किन में उच्च गुणवत्ता वाला कोलेजन (मज्जा) पाया जाता है। इस कोलेजन को दवाओं के अलावा क्रियाशील आहार, कॉस्मेटिक उत्पादों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। बीते कुछ वर्षों में इन सामग्री की वैश्विक मांग बढ़ रही है। यहां तक कि घोल का महंगा कमर्शल प्रयोग भी होता है। उदाहरण के तौर पर मछली के पंखों को दवा बनाने वाली कंपनियां घुलनशील सिलाई और वाइन शुद्धि के लिए इस्तेमाल करती हैं।