लाखों की नौकरी छोड़कर सुहानी बन गईं भारत की रियल पैडवुमन
इस समय हर जगह पैडमैन की चर्चा हो रही है चाहे फिर वो अक्षय कुमार की फिल्म हो या वह शख्स अरुणांचलम मुर्गनाथम जिस पर यह फिल्म बनाई गई है। साथ ही चर्चा में आ रहीं हैं ऐसी ही कुछ रियल पैडवुमन जो कि सैनटरी नैपकीन के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। आपको बता दें कि मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर भी इस क्षेत्र में कारगर हैं लेकिन उस तरह नहीं जिस तरह से एक सुहानी मोहन। आज हम सुहानी मोहन की सफलता की कहानी के बारे में आप से चर्चा करने जा रहे हैं। आपको हम यहां पर बताएंगे कि कैसे सुहानी ने लाखों रुपए की सैलरी को छोड़कर इस राह पर चल पड़ीं।
आईआईटी बाम्बे से की हैं पढ़ाई
मुंबई में रहने वाली सुहानी मोहन गांव की महिलाओं के लिए खासतौर पर काम कर रही हैं। वो भले ही आईआईटी बाम्बे जैसे कॉलेजों से पढ़ाई की हों लेकिन वो जमीन से जुड़ी हुई एक अद्भुत इंशान हैं। सुहानी ने IIT मुंबई से ग्रेजुएशन करने के बाद डुएश बैंक में एक इंवेस्टमेंट बैंकर के तौर पर काम किया है। सुहानी अक्सर बैंक की सीएसआर गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए जाया करती थीं उसी दौरान वह ग्रामीण महिलाओं के संपर्क में आयीं और उनकी परेशानियों को अपना समझा और उनके कुछ खास करने का ठाना।
ठुकरा दी लाखों की सैलरी
महिलाओं की परेशानी को समझते हुए और उनके लिए कुछ करने के लिए सुहानी ने अपनी नौकरी छोड़ते हुए लाखों की सैलरी को ठुकरा कर एक नई दिशा में चल पड़ी। उन्होंने सैनटरी नैपकिन से संबंधित कई सारे रिसर्च किए और इस काम को आगे बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत करने लगीं।
सरल डिजाइंस की बनी को-फाउंडर
एक दिन सुहानी की मेहनत रंग लायी जब वो अपने स्टार्टअप सरल डिजाइंस की को-फाउंडर बनीं। उन्होंने इसकी शुरुआत आईआईटी मद्रास से ग्रेजुएट हुए मशीन डिजाइनर कार्तिक मेहता के साथ मिलकर की। भले ही सुहानी के घर वाले उनके इस काम से खुश नहीं थे लेकिन फिर भी सुहानी लगातार इस पर काम करती रहीं।
बंग्लादेश और अरब अमीरात में सक्रिय है स्टार्टअप
सरल डिजाइंस की शुरुआत सुहानी ने 2015 में अपने दोस्त कार्तिक मेहता के साथ की थी। भले ही इस स्टार्टअप की शुरुआत छोटी थी लेकिन ये स्टार्टअप आज ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदलने में एक अहम भूमिका निभा रहा है। उनका यह स्टार्टअप बांग्लादेश से अरब अमीरात तक सक्रिय है।
इंदिरा नूई जैसा बनाना चाहते थे माता-पिता
आज तक न्यूज चैनल में दिए गए इंटरव्यू के दौरान सुहानी ने बताया कि उनके माता-पिता उन्हें हमेशा इंदिरा नूई जैसा बनने के लिए प्रेरित करते थे। शायद यह काम उन्हें उनसे भी ज्यादा और अच्छा इंशान बना दे।
सस्ते पैड बनाने पर दिया जोर
मार्केट में जो भी ब्रांडेड पैड मिलते हैं वो बहुत ही महंगे होते हैं। इसलिए सुहानी का सपना था कि वो सस्ते पैड बनाएं ताकि उसे ग्रामीण महिलाएं खरीद सकें। साथ ही उन्हें बाजार में मिलने वाले महंगे पैड की तरह क्वालिटी में भी खरा उतरना था। इसके लिए वो सैनटरी पैड बनाने वाली कई कंपनियों और इंटरप्रेन्योर से भी मिलीं। इसी दौरान वो अरुणांचलम मुर्गनाथम की फैक्ट्री में भी गईं।
पहला निवेश 2 लाख रुपए का था
सुहानी ने अपने स्टार्टअप की शुरुआत 2 लाख में निवेश के तौर पर शुरु की। सुहानी के दोस्त कार्तिक और उनके दोस्तों ने मिलकर सैनटरी पैड बनाने की मशीन तैयार की और इस तरह से उनका काम निकल पड़ा। अब वह गरीब और ग्रामीण महिलाओं की जिंगदी में एक नया सवेरा लाने के प्रयास में लगी हुई हैं।
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