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परिवर्तन के शिखर पर भारतीय अर्थव्यवस्था

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारत दुनिया में एक सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश बना रहा। अंतिम अनुमानों के अनुसार 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद में 7.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

By G.srinivasan
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एक दशक के बाद मई 2014 में एनडीए सरकार के कार्यभार संभालने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था आज एक अनुकरणीय मामला प्रस्तुत कर रही है कि किस प्रकार बिना किसी हायतौबा मचाए प्रभावी रूप से कार्य किया जा सकता है। सरकार ने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है और यह बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016, रीयल इस्टेट सेक्टर और पिछले नवंबर में कालेधन धारकों पर एक बड़ी कार्रवाई के रूप में पांच सौ और एक हजार रुपये के बड़े नोटों के विमुद्रीकरण सहित बैंकिंग और कॉरपोरेट क्षेत्र में बड़े आर्थिक सुधार लाने में समर्थ है।

 

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारत दुनिया में एक सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश बना रहा। अंतिम अनुमानों के अनुसार 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद में 7.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि 2014-15 में यह 7.2 प्रतिशत रही थी। यह वर्ष प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अधीन एनडीए सरकार का शुरूआती वर्ष था। पहले ही वर्ष में अर्थव्यवस्था को विरासत में मिले मुद्दों को सहन करना पड़ा और पिछली सरकार द्वारा विरासत में मिली गड़बड़ी को भी साफ करना पड़ा।

 

इसी दौरान 2016-17 के लिए जीडीपी में बढ़ोत्तरी के दूसरे अग्रिम अनुमान को 7.1 प्रतिशत आंका गया है। रीयल सेक्टर गतिविधियों के मामले में कुछ विस्थापन हो सकते हैं। लेकिन मुद्रा सुधार कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कम नकदी प्रणाली, कर अनुपालन में बढ़ोत्तरी और आतंक वित्त पोषण की स्रोत नकली मुद्रा के खतरे को न्यूनतम करने से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह याद रखने की जरूरत है कि सरकार के पहले दो वर्षों में एक के बाद एक सूखा पड़ने के कारण कृषि क्षेत्र के सामने गंभीर संकट पैदा हुआ और इस कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को परेशानी का सामना करना पड़ा। पहले दो वर्षों में कमजोर कृषि विकास और लगातार तीसरे वर्ष औद्योगिक क्षेत्र में उत्साहहीन वृद्धि होने से भी अर्थव्यवस्था की समग्र विकास गति कमजोर नहीं हुई है, बल्कि यह अब सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित 60 प्रतिशत से भी अधिक है।

सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उनकी वैश्विक जोखिम मानदंडों के अनुरूप पूंजी जरूरतों को पूरा करने और क्रेडिट वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए इन बैंकों में पूंजी लगा रही है। किसानों को लागत प्रभावी ऋण देने और सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों के लिए क्रेडिट की पहुंच बढ़ाने सहित गरीबों को आवास ऋण देने के प्रावधान के लिए प्रधानमंत्री द्वारा अभी हाल में की गई घोषणाओं से अर्थव्यवस्था से गरीब तबकों के लिए संस्थागत ऋण के दायरे का विस्तार होगा। इसके साथ-साथ उत्पादक गतिविधियों के लिए लघु उद्यमियों के लिए संरक्षित माइक्रो क्रेडिट सुविधाएं प्रदान करने में माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) सक्रिय है। व्यक्तियों के लिए 'आधार' द्वारा मजबूत की गई बायोमैट्रिक आधारित विशिष्ट पहचान प्रणाली और डिजिटल भुगतान तंत्र के तेजी से विस्तार के लिए सरकार के वित्तीय समावेशन के प्रयासों को गति प्रदान करेगी।

हाल के वर्षों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की नीति को व्यापक रूप से उदार बनाने के कारण रोजगार और नौकरियों के सृजन में बढ़ावा मिल रहा है। एक नकारात्मक छोटी सूची को छोड़कर अधिकांश क्षेत्र अब स्वचालित स्वीकृति मार्ग अपना रहे हैं। भारत अब एफडीआई के लिए विश्व की एक पूर्ण रूप से खुली अर्थव्यवस्था बन गया है। अप्रैल-दिसंबर, 2016-17 के दौरान सकल एफडीआई प्रवाह बढ़कर 31.18 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 27.22 बिलियन अमरीकी डॉलर था। आर्थिक मूल सिद्धांतों की बढ़ती हुई ताकत ने भारत को निवेशकों के लिए एक प्रिय गंतव्य स्थल बना दिया है।

24 मार्च, 2017 के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 367.93 बिलियन अमरीकी डॉलर था। वर्ष 2014-15 और 2015-16 में चालू लेखा घाटा (सीएडी) क्रमशः 1.3 प्रतिशत और 1.1 प्रतिशत रहना इसके अन्य अनुकूल बिंदु हैं।

अर्थव्यवस्था की सार्वजनिक निवेश जरूरतों और गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों पर व्यय करने के बारे में कोई समझौता किए बिना राजकोषीय समेकन के स्थिर मार्ग को अपनाते हुए भारत का सकल वित्तीय घाटा (जीएफडी) वर्ष 2016-17 में 3.5 प्रतिशत रहा। वर्ष 2017-18 के लिए जीएफडी 3.2 प्रतिशत आंका गया है, जिसके साथ आगामी वर्ष में इसे 3 प्रतिशत अर्जित करने की प्रतिबद्धता भी शामिल है। सुस्त निजी निवेश और कम वैश्विक विकास को देखते हुए अधिक सार्वजनिक व्यय की बढ़ती हुई जरूरतों के कारण सार्वजनिक निवेश में अत्यधिक कटौती को रोकने के लिए वित्तीय समेकन की दिशा में मजबूत दृष्टिकोण को तर्कसंगत रूप से अपनाया जा रहा है।

केंद्रीय बजट 2017-18 में बुनियादी ढांचे के साथ-साथ ग्रामीण, कृषि और संबंधित क्षेत्रों के लिए संसाधन के आवंटन में काफी बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार व्यय और विमुद्रीकरण के कारण बैंकों में जमा की गई भारी धनराशि से प्राप्त उच्च कर प्राप्तियों की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देकर वित्तीय लचीलेपन को जारी रखेगी। भारत एक जुलाई, 2017 से वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) लागू करने के लिए पूरी तरह तत्पर है। जीएसटी से कराधान दक्षता में सुधार सुनिश्चित होगा तथा व्यापार करने में आसानी होने से भारत में एक साझा बाजार उपलब्ध होगा।

वर्ष 2014 से भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था की पूरी क्षमता बढ़ाने के लिए मजबूत संरचनात्मक सुधारों को लागू करने के लिए व्यवस्थित और स्थिर प्रयास किए हैं। वस्तु और सेवाकर अधिनियम, आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी लाभ और सेवाओं की लक्षित आपूर्ति) अधिनियम 2016 सब्सिडियों को युक्तिपूर्ण बनाना और नये कॉरपोरेट दिवालियापन ढांचे के लिए इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 अधिनियमन, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) सहित दूरगामी सुधार शुरू किए गए हैं।

अन्य विशिष्ट नीतिगत पहलों में पीपीपी के लिए हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल लागू करना, खान एवं खनिज संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय पूंजीगत वस्तु नीति की घोषणा और निर्माण क्षेत्र में मध्यस्थता में तेजी लाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों को निर्देश देना शामिल हैं। इसके अलावा व्यापार कार्य को आसान बनाने में भारत की रैंकिंग में लगातार प्रगति, भारत सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम मेक इन इंडिया से नई प्रकियाओं, नये बुनियादी ढांचे, नये क्षेत्रों और उद्यमी उत्साह को बढ़ाना देने की नई मानसिकता में लगातार प्रगति हुई है। भारत निश्चित रूप से प्रमुख बदलाव के शिखर की ओर अग्रसर है।

लेखक द हिंदू समूह के पूर्व उप-संपादक हैं और अब स्वतंत्र रूप से आर्थिक पत्रकार के रूप में काम करते हैं और दिल्ली में रहते हैं। इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं

English summary

Indian Economy on The CUSP of Change

As the government completes three years in the saddle, it is able to usher unobtrusively significant economic reforms to spur the economic growth
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