एक CEO जिसने कर्ज लेकर अपने कर्मचारियों को वेतन दिया!
एक बड़े से ऑफिस के बीचो-बीच पेटीएम के सीईओ विजय शेखर शर्मा नजरों को कंप्यूटर स्क्रीन पर गड़ाए हुए कुछ काम करते रहते हैं, उनसे जब पूछा जाता है कि उनका कैबिन कहां है तो वो हंसते हुए कहते हैं कि यही मेरा कैबिन है, मैं यहीं काम करता हूं। वो अपने कर्मचारियों के साथ नहीं बल्कि अपनी टीम के साथ काम करते हैं, उन्हें एंम्पलॉयी-बॉस कल्चर पसंद नहीं है, बल्कि वो 'टीम' में विश्वास रखते हैं। टाइम मैजगीन ने उन्हें और पीएम मोदी को दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में रखा है। पेटीएम के फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा को जब भी आप देखेंगे तो आपको एक हंसता हुए चेहरा दिखेगा, कुल मिलाकर कहा जाए तो वो इस दौरान भारत के सबसे 'कूल' CEO,s में से एक हैं।
12 साल की उम्र में 10वीं पास
विजय शेखर शर्मा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के रहने वाले हैं। विजय शेखर शर्मा अपने बचपन के दिनों के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि वो एक बेहद अनुशासन वाले परिवार में पले-बढ़े हैं। उन्होंने बताया कि वो 10वीं क्लास में जब पढ़ते थे तो उनकी उम्र केवल 12 साल थी। विजय शेखर बताते हैं कि वो पढ़ाई में काफी अच्छे थे जिसके कारण उनके शिक्षक उन्हें आगे की क्लास में भेज देते थे।
घर की 'बहू' थे विजय शेखर
आज के विजय शेखर शर्मा और बचपन के विजय शेखर शर्मा में जमीन आसमान का अंतर है। आज जब आप उनसे मिलेंगे या फिर उन्हे देखेंगे चाहे वो कोई भी माध्यम हो, टीवी हो, यू ट्यूब हो आपको एक हाजिर जवाब और विजय शेखर शर्मा दिखेंगे लेकिन वो खुद बताते हैं कि बचपन के दिनों में वो बहुत अंतरमुखी थे और कई बार जब कोई मेहमान घर आता था तो वह घर के अंदर चले जाते थे। उन्होंने बताया कि जब कोई घर पर आता था तो उनकी मां कहती थीं कि 'हमारे घर में एक बहू भी है जो अंदर चली गई होगी अभी, उसको बुला कर लाओ'।
किताबी कीड़ा, पढ़ने के शौकीन
विजय शेखर शर्मा ने बताया कि वो बचपन के दिनों से ही किताबें पढ़ते थे, उन्हें किताबें-मैगजीन पढ़ने का बहुत शौक था। वो बड़े गर्व के साथ बताते हैं कि वो एक किताबी कीड़ा थे, जिसके कोई और शौक होते नहीं थे। किताबों से जब उनका कभी मन हटता तो थोड़ा बहुत क्रिकेट वगैरह खेल लेते थे।
हिंदी मीडियम का लड़का अंग्रेजी से जूझता रहा
विजय शेखर शर्मा ने आगे बताया कि 15 साल की उम्र में उन्होंने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया। हालांकि इस दौरान उन्हें भाषा की समस्या से दो-चार होना पड़ा। विजय शेखर बताते हैं कि वो माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश (यूपी बोर्ड) से हिंदी मीडियम से पढ़े हुए थे और दिल्ली में सारी पढ़ाई अंग्रेजी में होती थी, टीचर भी क्लास में अंग्रेजी में ही बोलते थे। ये एक ऐसा दौर था जब उनका मन क्लास से हट गया था, हालांकि इस दौरान वो भटके नहीं और खुद को खोजते रहे, और इसी खोज ने उन्हें कंप्यूटर सेंटर की राह दिखी दी। विजय शेखर हॉस्टल से कॉलेज आते और वो एक-दो क्लास के बाद कंप्यूटर सेंटर चले जाते थे। हालांकि इस दौरान उन्होंने अंग्रेजी मैगजीन और अखबार पढ़ कर अपनी अंग्रेजी को भी तराशा।
सेकेंड हैंड मैगजीन बनी टर्निंग प्वाइंट
विजय शेखर शर्मा ने बताया कि उनके जीवन में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब हॉस्टल के दिनों में वो अपने दोस्तों के साथ दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास दरियागंज है जहां संडे मार्केट लगा करती थी जहां कई सेकेंड हैंड अंग्रेजी मैगजीन और किताबे बिकती थीं। उन्होंने बताया कि ऐसे ही मार्केट में घूमते हुए उन्होंनो कुछ फॉर्च्यून मैगजीन मिलीं जो कि सिलिकॉन वैली कल्चर के उपर थी। विजय शेखर ने आगे बताया कि उन्होंने उस मैगजीन से सिलिकॉन वैली के बारे में पढ़ा और सीखा।
क्या थी सोच
विजय शेखर शर्मा ने बताया कि जब उन्होंने फॉर्च्यून मैगजीन के जरिए सिलिकॉन वैली को जाना और कंप्यूटर सेंटर में प्रोग्रामिंग वगैरह सीखी तभी उनके दिमाग में एक विचार आया कि, जैसे अमेरिका में सिलिकॉन वैली है वैसे ही भारत में एक सिलिकॉन वैली बनाई जा सकती है, और ये विचार उन्हें 1995-96 के दौरान पढ़ाई करते हुए आया। विजय शेखर बताते हैं कि उस दौर के भारत में इंटरनेट को लेकर बहुत ज्यादा बूम नहीं था, इंडिया गेट नाम की एक वेबसाइट थी, हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि अमेरिका में भी इंटरनेट को लेकर कुछ ऐसे ही दृश्य थे।
'जो अमेरिका में हो सकता है वो भारत में क्यों नहीं'
विजय शेखर एक बड़ी दिलचस्प बात कहते हैं कि, उन्हें अमेरिका जाने का इंट्रेस्ट तब से खत्म हो गया जब से उन्हें ये समझ में आया हम इंडिया में बैठकर कुछ कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने और उनके दोस्त हरिंदर ने मिलकर एक सर्च इंजन बनाया जिसका नाम XS रखा। ये एक्सेस (ACCESS) शब्द का एक स्लैंग रुप था। इसके बाद जब भारत में इंटरनेट का उदय हो ही रहा था उसी दौरान उन्होंने अपनी वेबसाइट 1 मिलियन डॉलर में बेच दी।
संघर्ष की कहानी
इसके बाद विजय शेखर शर्मा के संघर्ष की कहानी शुरु होती है। उन्होंने फिर साल 2000-01 में भारत आकर वान97 कम्युनिकेशन्स कंपनी की स्थापना की, जो मोबाइल से जुड़ी वैल्यू-एडेड सर्विसेस देती है। 2010 में आईपीओ (पब्लिक इश्यू) लाने का सोचा, लेकिन विफल रहे। कंपनी की स्थापना के दौरान उन्होंने 7 साल तक किसी तरह की कोई फंडिग नहीं ली और जो भी आय होती थी उसी से वह अपने कर्मचारियों को वेतन देते थे। हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब वो कैशफ्लो को सही से हैंडल नहीं कर सके और उन्हें कर्ज लेकर अपने कर्मचारियों को वेतन देना पड़ा। विजय शेखर शर्मा ने बताया कि उन्होंने 24 प्रतिशत की ब्याज दर पर 8 लाख रुपए कर्ज लेकर अपने कर्मचारियों को वेतन दिया और अपनी कंपनी चलाई।
चाय पीने तक के पैसे खत्म हो गए थे
इस दौरान उन्हें तमाम दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। विजय शेखर शर्मा ने बताया कि एक वक्त आया जब उन्हें चाय पीने और खाना खाने के लिए भी लोन लेना पड़ा। वहीं परिवार की तरफ से भी लगातार दबाव बन रहा था कि कंपनी में घाटा हुआ सो हुआ लेकिन अब कोई अच्छी नौकरी ढूंढ ली जाए, वहीं विजय शेखर शर्मा इस अपनी बात पर अडिग थे कि अब जो रास्ता उन्होंने चुन लिया है उससे पीछे नहीं आ सकते हैं। ये वो दिन थे जब उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो बस से सफर कर सकें और वह 14-14 किलोमीटर तक का सफर पैदल चलकर ही तय करते थे।
संघर्ष में बढ़ते रहे आगे, नहीं टूटा धैर्य
उन्होंने आगे बताया कि इन कठिन दिनों में उन्होंने लेक्चर दिए, ई-मेल सेटअप किए और इसी तरह के छोट-मोटे जॉब करके उन्होंने कुछ पैसे कमाए, हालांकि ये इतना नहीं था कि उनका 8 लाख रुपए का कर्ज चुका सके। इसी दौरान वो एक बिजनेस टाइकून से मिले जिन्होंने विजय शेखर शर्मा को सीईओ बनने के ऑफर दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया और बताया कि उनकी खुद की कंपनी है और वो कुछ लोन है जिसे चुकाने के लिए ये काम कर रहे हैं। इसके बाद बिजनेस टाइकून ने उन्हें 8 लाख रुपए दिए और उनकी कंपनी में 14 परसेंट की इक्विटी के साथ जुड़े। हालांकि ये कौन बिजनेस टाइकून थे इसके बारे में पेटीएम के सीईओ ने कुछ बताया नहीं।
यहां से हुई पेटीएम की शुरुआत
उन्होंने बताया कि एक दिन 2011 के दौरान उन्होंने फीचर फोन और बड़े-बड़े होर्डिंग्स देखे। वहीं उन्होंने ये सोचा कि एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया जाए जहां लोग अपने फोन के जरिए विभिन्न चीजों का भुगतान कर सकें। इसके बाद शुरुआत हुई पेटीएम की। शुरुआत में पेटीएम से जरिए जहां मोबाइल रीचार्ज होता था वहीं बाद में इससे मूवी टिकट्स, बस के टिकट्स, ऑनलाइन शॉपिंग समेत कई तरह के बिल का भुगतान किया जा सकता है।
50 करोड़ भारतीयों को पेटीएम से जोड़ने का लक्ष्य
पेटीएम के सीईओ बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि वो पेटीएम के जरिए 50 करोड़ भारतीयों को मेन स्ट्रीम इकोनॉमी से जोड़ना चाहते हैं और इसमें लगातार लोग जुड़ भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब कैश की बात आती है तो करप्शन अपने आप आ जाता है और डिजिटल प्लेटफॉर्म होने की वजह से करप्शन के चांस लगभग खत्म हो जाते हैं। पेटीएम के सीईओ विजय शेखर शर्मा भारत में एक कैशलेस अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं जिसकी तरफ वह सफलता पूर्वक बढ़ रहे हैं।
नोटबंदी ने किया माला-माल
8 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का निर्णय लिया। ये निर्णय काले धन वालों और जनता के एक धनाड्य वर्ग के लिए तो कष्टप्रद रहा लेकिन विजय शेखर शर्मा की तो चांदी हो गई। विजय इस अवसर के लिए तैयार थे और इसका बखूबी फायदा Paytm ने उठाया। 500 और 1000 के नोट बंद हो जाने और एटीएम के बाहर लम्बी लाइन लगाने से बचने के लिए लोग बड़ी संख्या में Paytm का उपयोग करने लगे। पेटीएम के ऑनलाइन वॉलेट, मोबाइल रिचार्ज, बिल पेमेंट, मनी ट्रान्सफर और शौपिंग फीचर से लाखों नए लोग जुड़े और पुराने ग्राहकों ने भी जम कर उपयोग किया।
खुली आंखो से सपने देख रहे हैं विजय शेखर शर्मा
नोटबंदी से आई तेजी से पेटीएम को इतना फायदा हुआ कि 5 बिलियन के बिजनेस का लक्ष्य समय से 4 महीने पहले ही पूरा हो गया। विजय शेखर शर्मा का कहना है कि आजकल उन्हें नींद की जरुरत नहीं पड़ती, वो जागती आंखों से सपना देख रहे हैं।
इस लेख के अंधिकांश तथ्य सिमरप्रीत सिंह से विजय शेखर शर्मा के साक्षात्कार पर आधारित हैं