आयकर ई-फाइलिंग में टैक्स-फ्री इनकम को शो करें या नहीं?
आपके द्वारा प्राप्त की गई हर आय, कर के दायरे में नहीं आती है। लेकिन आपको यह याद रखना होगा कि चाहें आय, कर के दायरे में आती हो या नहीं, परन्तु आप उसे कर रिटर्न फाइल के करने के दौरान अवश्य दिखाएं। कई लोग ऐसी गलती कर बैठते हैं, उन्हे लगता है कि जो आय करमुक्त है, उसका ब्यौरा देना भी जरूरी नहीं होता है, बस यहीं चूक हो जाती है।
आपने यह जान लिया कि हर प्रकार की आय की सही जानकारी देना आवश्यक है लेकिन आपको यह जानना भी जरूरी है कि किस प्रकार की आय, करमुक्त आय के दायरे में आती है। आइए जानते हैं करमुक्त आय के प्रकार:
1. बचत बैंक खाता पर ब्याज
अगर आपका किसी बैंक में बचत बैंक खाता है तो उसमें मिलने वाली ब्याज राशि, कर मुक्त होती है लेकिन इस ब्याज की सीमा 10,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए। उदाहरण के लिए- अगर ब्याज 8000 रूपए होता है, तो करमुक्त आय हुई लेकिन अगर ब्याज 11,000 रूपए मिलता है तो इस पर कर लगेगा। बचत बैंक खाते पर मिलने वाला ब्याज, कर रहित होता है लेकिन इसका विवरण देना आवश्यक है।
2. करमुक्त बॉन्ड पर ब्याज
लगभग दो वर्ष पूर्व करमुक्त बॉन्ड को लांच किया गया था, ताकि लोगों को करमुक्त ब्याज राशि मिले। भारतीय रेल वित्त निगम, हुडको,राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण आदि ने ऐसे बॉन्ड को निकाला। इन बॉन्ड पर जो ब्याज मिलता है, उस पर टैक्स नहीं लगता है। अगर आप भी ऐसे ही बॉन्ड के होल्डर है तो इनसे होने वाली आय आपकी होती है परन्तु ब्यौरा देना आवश्यक है, उसके पश्चात् ही आप छूट का दावा कर सकते हैं।
3. पीपीएफ पर मिला ब्याज
निवेशकर्ता को पीपीएफ पर मिलने वाला ब्याज, करमुक्त होता है। हालांकि, आपको इसे कर रिटर्न में दिखाना आवश्यक होता है।
4. शेयरों की बिक्री पर लाभ
अगर आपने शेयर खरीदे और एक साल तक उन्हे रखने के बाद बेचा तो उस पर मिलने वाला लाभ, करमुक्त होता है। लेकिन आपको पूरा विवरण देना पड़ेगा कि आपको इतनी राशि शेयरों की ब्रिकी से मिली है।
5. लाभांश आय
लाभांश आय, पूर्णत: करमुक्त होती है। लेकिन आपको कर रिटर्न के दौरान इसका उल्लेख करना आवश्यक होता है।
ध्यान रहें, आपकी हर आय का ब्यौरा सरकार के पास होता है, ऐसे में उसका सही उल्लेख न करना आपको मुश्किल में डाल सकता है। करमुक्त राशि का ब्यौरा देने से कतई न कतराएं। एफडी, आवर्ती जमा, पोस्टऑफिस में जमा राशि का भी विवरण अवश्य दें। समय से कर रिटर्न को दाखिल करें, इसकी अंतिम तिथि 31 जुलाई 2015 से बढ़ाकर 31 अगस्त 2015 कर दी गई है।